सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लोन मोराटोरियम की 6 महीने की अवधि के दौरान कर्ज पर ब्याज में राहत को लेकर केंद्र सरकार को अपना स्टैंड साफ करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार जनता के हित से जुड़े अहम मसले पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पीछे नहीं छिप सकती। जस्टिस अशोक भूषण और एम.आर. शाह की बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार के पास डिजैस्टर मैनेजमेंट ऐक्ट के तहत कई शक्तियां हैं और उसे अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को सिर्फ कारोबार के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि जनता के हित के बारे में ध्यान देना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि अब तक केंद्र सरकार आरबीआई के पीछे छिपती रही है, जिसने मोराटोरियम की अवधि के दौरान ब्याज पर छूट को लेकर इंडस्ट्री की चिंताएं रखी हैं।
मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत को इस तरह की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसे गलत ढंग से रिपोर्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने फाइनेंशियर रेगुलेटर के तौर पर कहा है कि लोन मोराटोरियम पर इंटरेस्ट में एकमुश्त छूट सही नहीं है। आरबीआई ने कहा है कि हमें ऐसे अकाउंट्स की पड़ताल करनी होगी, जो संकट में चल रहे हैं और उनकी स्थिति को देखते हुए ब्याज दर में कटौती की जा सकती है। लेकिन यह छूट प्रति केस अलग होगी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 1 सितंबर तक के लिए स्थगित करते हुए केंद्र सरकार से कहा कि उसे इस संबंध में अपना मत स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि आर्थिक संकट उसकी ओर से लगाए गए लॉकडाउन के चलते ही पैदा हुआ है।
दरअसल यह य़ाचिका आरबीआई के उस आदेश के खिलाफ जारी की गई थी, जिसमें कहा गया था कि लोन मोराटोरिय़म की अवधि के दौरान भी बकाया कर्ज पर ब्याज जारी रहेगा। इस ब्याज की रकम को मोराटोरियम खत्म होने के बाद एकमुश्त अदा किया जा सकता है या फिर किस्तों को बढ़वाया जा सकता है। आरबीआई के फैसले का विरोध करते हुए याचिका में कहा गया था कि साफ है कि कर्ज न चुका पाने वाले लोगों को राहत देते हुए मोरोटोरियम का ऐलान किया गया है, लेकिन आर्थिक संकट में घिरे लोगों के लिए ब्याज चुका पाना मुश्किल है। इसलिए मोराटोरियम की अवधि में कर्ज के ब्याज पर भी राहत दी जानी चाहिए।