व्यक्तिगत और व्यवसायिक कर्जदाताओं को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उसकी ओर से नए आदेश तक किसी भी लोन अकाउंट को एनपीए नहीं घोषित किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने मोराटोरियम की अवधि के दौरान ब्याज की वसूली को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा अगले आदेश तक या मोराटोरियम मामले में फैसला आने तक किसी भी लोन अकाउंट को एनपीए में न डाला जाए। अदालत ने इंडियन बैंकर्स एसोसिएशन की ओर से किसी भी खाते को एनपीए होने से बचाने के लिए दो महीने के मोराटोरियम की बात के बाद यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जिन लोन खातों को 31 अगस्त तक एनपीए घोषित नहीं किया गया है। उन्हें अगले आदेश तक एनपीए डिक्लेयर न किया जाए।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने कर्जधारकों के हितों का ध्यान रखते हुए अंतरिम ऑर्डर पास कर बैंकों द्वारा लोन अकाउंट को एनपीए घोषित करने पर रोक लगा दी। कोरोना के कारण लोन रिपेमेंट करने में लाखों कर्जधारकों को फंड की व्यवस्था करने में बहुत दिक्कत हो रही थी। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट अगली सुनवाई 10 सितंबर को करेगा। आपको बता दें अगर किसी खाते को एनपीए घोषित कर दिया जाता है तो फिर बैंक बंधक प्रॉपर्टी को बेचकर भी कर्ज की रिकवरी कर सकते हैं।
इससे पहले कर्जदाताओं ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि लॉकडाउन के कारण पिछले 6 महीने से उन्हें अपने बिजनेस में कुछ हासिल नहीं हुआ। इसके बावजूद उनसे ब्याज और लंबित किस्तों पर ब्याज पर ब्याज लिया जा रहा है। उन्होंने कहा था जब मोराटोरियम पीरियड खत्म हो जाएगा तो उनपर कंपाउंड इंटरेस्ट के साथ विलंबित किश्तों का बोझ बढ़ जाएगा जिसका भुगतान करना उनके लिए मुश्किल होगा। ऐसे में बैंक हमारे लोन को नॉन प्रफोरमिंग एसेट घोषित कर सकते हैं।
वित्त मंत्री ने बैंकों से कहा, 15 सितंबर तक लाएं राहत स्कीम: इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों के प्रमुखों से मुलाकात कर कहा है कि वे कोरोना काल में संकट में घिरे बिजनेस के लिए 15 सितंबर तक लोन रिस्ट्रक्चर की स्कीम लेकर आएं। इसके साथ ही उन्होंने बैंकों से कहा कि वे कर्जधारकों का सपोर्ट करें। उन्होंने कहा कि बैंकों को ग्राहकों से बात करनी चाहिए और संकट में घिरे बिजनेस को उबारने के लिए प्लान पेश करना चाहिए।