अमेरिका में मंदी के आसार दिखाई पड़ रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई ने ऐसी चुनौतियां पेश कर दी हैं कि दुनिया की सुपर पावर इस समय ‘पावरलैस’ नजर आ रही है। अब अमेरिका पर पड़ने वाला असर सिर्फ उसके देश तक सीमित नहीं रहता है बल्कि उसका प्रभाव पूरी दुनिया तक पर जाता है। इसी वजह से मंदी की सुगबुगाहट तो अमेरिका में है, लेकिन दुनिया भर के शेयर बाजार इस समय गिरावट में चल रहे हैं। भारत भी कोई अपवाद नहीं है और वहां सेंसेक्स और निफ्टी दोनों हिचकोले मार रहा है।
अब भारत में शेयर बाजार में गिरावट के कई कारण सामने आ रहे हैं, अगर तीन बड़ी वजहों की बात करें तो वो उस प्रकार हैं-
- अमेरिका में मंदी के संकेत मिले हैं। साहम मंडी इंडिकेटर 0.5 से ऊपर चल रहा है। सरल शब्दों में जब भी यह इंडिकेटर 0.5 से ज्यादा जाता है, इसे मंदी की सुगबुगाहट माना जाता है। अब इस आंकड़े के भी अपने कारण हैं। असल में अमेरिका में बेरोजगारी दर 4.3 फीसदी तक पहुंच गई है, यह पिछले साल अक्टूबर के बाद से सबसे ज्यादा है। इसी तरह इस साल मासिक नौकरियां सिर्फ 1 लाख 14 हजार निकली हैं जो पिछले साल तक 2 लाख 15 हजार थी।
- वैसे सिर्फ अमेरिका की वजह से ही भारत के शेयर बाजार में गिरावट नहीं आई है। बैंक ऑफ जापान ने सभी को हैरान करते हुए ब्याज दरों को बढ़ाने का फैसला किया। जिस समय पूरी दुनिया कम ब्याज दर की ओर कदम बढ़ा रही है, जापान ने उल्टी दिशा में कदम बढ़ाए। उसका मानना था कि येन करेंसी को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने के लिए यह कदम उठाना जरूरी था। लेकिन इस वजह से दुनिया के तमाम बाजारों में उथल-पुथल का दौर देखने को मिल रहा है, भारत पर भी उसका असर है।
- मध्य पूर्व के देशों में बढ़ता तनाव भी दुनियाभर के बाजारों को परेशान कर रहा है। अभी तक इजरायल और ईरान का युद्ध शुरू नहीं हुआ है, लेकिन जैसे हालात चल रहे हैं, असमंजस की स्थिति बनी हुई है। अगर ऐसा होता है तो तेल की सप्लाई चेन ब्रेक हो जाएगी और कीमतों में उछाल देखने को मिलेगा। वैसे अभी तक तेल की कीमतें भारत में कम चल रही हैं, लेकिन कई बार डर का माहौल भी मार्केट पर अपना असर डालता है।
दो तारीखों का खेल, समझिए पूरा शेयर बाजार
अब एक सवाल सभी के मन में यह चल रहा है कि आखिर पिछले दो महीनों में भारत का शेयर बाजार एक रोलर कोस्टर जैसा क्यों दिखाई पड़ा है। इसका एक तगड़ा उदाहरण तो 2 तारीखों में छिपा हुआ है। एक तारीख है 4 जून और दूसरी तारीख है 4 जुलाई। 4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे, सभी एग्जिट पोल कह रहे थे कि बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करेगी, 400 पार तक का अनुमान था। लेकिन असल नतीजों में बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई और एनडीए का आंकड़ा 300 पार भी नहीं हो पाया। इस वजह से शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखने को मिली।
4 जून को दोपहर 12.20 बजे तक सेंसेक्स 6094 अंक तक फिसलकर 70,374 के लेवल पर आ गया था, वही निफ्टी तो 1947 अंक की भारी गिरावट के साथ फिसलकर 21,316 के लेवल पर पहुंचा। इस एक झटके की वजह से निवेशकों को एक ही दिन में 30 लाख करोड़ तक का चूना लग गया था। अब यह बात 4 जून की है, लेकिन जैसा बाजार का मिजाज रहा है, ठीक एक महीने बाद 4 जुलाई को कहानी पूरी तरह पलट गई। 4 जुलाई को सेंसेक्स 80 हजार के भी पार चला गया और निफ्टी ने भी ऑल टाइम हाई टच किया। यानी कि जितना पैसा चार जून को गंवाया, उतना ही पैसा एक महीने बाद कमाने का मौका भी मिला।
बजट के बाद गिरावट, निवेशकों का भरोसा बरकरार
इसी तरह देश का जब पूर्ण बजट पेश किया गया, शेयर बाजार में शुरुआत में गिरावट देखने को मिली, जब कैपिटल गेन टैक्स को बढ़ा दिया गया, निवेशकों को बड़ा झटका लगा और सेंसेक्स और निफ्टी दोनों गिरावट में चले गए। लेकिन एक दूसरा आंकड़ा है जो बताता है कि वर्तमान सरकार में और उसकी नीतियों में विदेशी निवेशकों का भरोसा ना सिर्फ बरकरार है बल्कि कहना चाहिए और ज्यादा बढ़ गया है। असल में जुलाई महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में 32,365 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इसके अलावा एफपीआई ने जुलाई में शेयरों के अलावा ऋण या बॉन्ड मार्केट में 22,363 करोड़ रुपये का निवेश किया है।
क्यों आता है बाजार में उतार-चढ़ाव?
अब यह ट्रेंड बताता है कि शेयर बाजार में बात चाहे गिरावट की हो या फिर बढ़ोतरी की, दोनों ही काफी स्वभाविक है। बाजार में गिरावट या तेजी कई कारणों से आ सकती है। पूरी अर्थव्यवस्था या किसी बड़ी कंपनी का आर्थिक प्रदर्शन इसकी वजह हो सकता है। सरकार का उठाया कोई ऐसा कदम जिससे कारोबार पर सीधा असर पड़ने की आशंका है, बाजार में तेजी या गिरावट को ट्रिगर कर सकता है। मौसम से जुड़ी कोई खबर भी इसकी वजह हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किन्हीं दो देशों के बीच युद्ध या बड़े मुल्कों के बीच आपसी तनाव बढ़ने का असर भी बाजार पर पड़ता है।