कोरोना संकट से जूझ रही अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे दिनों का इंतजार लंबा होता दिख रहा है। इसके चलते रोजगार के अवसरों में भी कमी बनी रहेगी। Care Ratings की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले कम से कम एक साल तक नौकरियों के अवसरों की कमी रहेगी। इसकी एक वजह आर्थिक मंदी तो है ही, इसके अलावा लेबर की जगह तकनीक का इस्तेमाल भी है। हालांकि संकट के इश दौर में भी आईटी, बैंकिंग और फाइनेंस जैसे सेक्टर्स में रोजगार के अवसरों में इजाफा देखने को मिलेगा। देश में रोजगार की स्थिति पहले से ही संकट में थी लेकिन कोरोना महामारी के चलते लगे लगातार लॉकडाउन ने देश की बेरोज़गारी पर एक और तगड़ा प्रहार किया है।
उपभोक्ता आधारिक उद्योगों में रोजगार के अवसर इस बात पर निर्भर करेंगे कि आने वाले दिनों में मांग का स्तर क्या रहता है। इसके अलावा कैपिटल गुड्स से जुड़े उद्योगों के लिए इन्वेस्टमेंट अहम रहेगा। देश में पहले से ही रोजगार के अवसरों में कमी देखी जा रही थी। इस बीच कोरोना के संकट ने दोहरा झटका दिया है। रेटिंग एजेंसी की ओर से किए गए 4,102 कंपनियों के सर्वे में यह बात सामने आई है कि सैलरी ग्रोथ फाइनेंशियल ईयर 2020 में 8.5 पर्सेंट थी, जबकि 2019 में यह आंकड़ा 10.3 पर्सेंट का था। इसके बाद फाइनेंशियल ईयर 2021 की पहली तिमाही में यह महज 4.6 पर्सेंट ही रह गया है।
दरअसल लॉकडाउन के इस संकट ने हॉस्पिटैलिटी, रियल एस्टेट, मीडिया, एंटरटेनमेंट और एविएशन सेक्टर को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसके अलावा ड्यूरेब्लस और ऑटो सेक्टर को भी बड़ा नुकसान हुआ है। यही नहीं संगठित रिटेल सेक्टर भी लॉकडाउन की अवधि में प्रभावित हुआ है। बड़ी संख्या में रोजगार देने वाले इन सेक्टर्स के प्रभावित होने से बड़े पैमाने पर नौकरियां गई हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के डाटा के मुताबिक करीब 2.1 करोड़ नौकरियां अगस्त के अंत तक कोरोना काल में गई हैं। 2019-0 में देश में 8.6 करोड़ लोग ऐसे थे, जो सैलरीड जॉब्स करते थे। अब यह आंकड़ा 6.5 करोड़ ही रह गया है। साफ है कि दो करोड़ से ज्यादा सैलरीड क्लास के लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है।
