Mutual Fund Investment : म्यूचुअल फंड के जरिए शेयर बाजार में निवेश करना हो, तो उसकी सही रणनीति क्या होगी? निवेश के लिए उपलब्ध पूरी रकम एक साथ लगा देनी चाहिए या एसआईपी के जरिये हर महीने थोड़े-थोड़े पैसे इनवेस्ट करना बेहतर रहेगा? बहुत सारे निवेशकों को यह सवाल कनफ्यूज कर सकता है। पिछले आंकड़े बताते हैं कि म्यूचुअल फंड में अगर काफी लंबी अवधि, यानी 15-20 साल के लिए निवेश किया जाए, तो दोनों ही तरीकों से पॉजिटिव रिटर्न मिलने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन छोटे निवेशकों के लिए आमतौर पर एसआईपी के जरिये निवेश करना ज्यादा बेहतर माना जाता है। आइए जानते हैं कि ऐसा मानने की वजह क्या है।
छोटी रकम से निवेश शुरू करने की सुविधा
लंपसम यानी एकमुश्त निवेश करने के लिए आपके पास पहले से मोटी रकम होनी चाहिए। अगर आप इस रकम के जमा होने का इंतजार करते रहेंगे तो निवेश शुरू करने में देर होगी। लेकिन एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान की मदद से आप बेहद छोटी रकम से भी इनवेस्टमेंट की शुरुआत कर सकते हैं। अगर आप हर महीने 500 या 1000 रुपये लगा सकते हैं, तो भी एसआईपी शुरू कर सकते हैं। इतनी छोटी रकम भी लगातार लंबी अवधि तक निवेश करने पर एक बड़ा फंड तैयार कर सकती है। आगे चलकर आमदनी बढ़ने पर आप निवेश की रकम बढ़ा भी सकते हैं। इसके लिए आप स्टेप-अप एसआईपी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। एसआईपी की यह खूबी नौकरीपेशा लोगों या करियर की शुरुआत कर रहे युवाओं के लिए काफी फायदेमंद है, जो चाहें तो पहली सैलरी से ही अपनी इनवेस्टमेंट जर्नी शुरू कर सकते हैं।
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शेयर बाजार की अस्थिरता में बेहतर प्रदर्शन
सिर्फ सैद्धांतिक तौर पर बात करें, तो बाजार में पैसे उस वक्त लगाने चाहिए जब कीमतें सबसे कम हों। लेकिन सबसे अनुभवी निवेशक भी पक्के तौर पर नहीं बता सकते कि बाजार कम सबसे निचले स्तर पर है। हो सकता है, जिसे आप अभी बेहद निचला स्तर मानकर निवेश करें, कल बाजार उससे भी नीचे चला जाए। या आप बाजार के और गिरने की उम्मीद में निवेश न करें और अगले ही दिन से बाजार तेजी की राह पकड़ ले। यानी बाजार में निवेश की परफेक्ट टाइमिंग की तलाश करना बेकार है। बाजार के इन उतार-चढ़ावों में एसआईपी के जरिये निवेश करना बेहतर रहता है।
रिस्क को कैसे कम करता है SIP
एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड में हर महीने पहले से तय थोड़ी-थोड़ी रकम निवेश की जा सकती है। इसकी वजह से आपके निवेश पर बाजार के उतार चढ़ाव का असर कम पड़ता है। ऐसा रुपी कॉस्ट एवरेजिंग की वजह से होता है। इसका मतलब ये है कि अगर आपके एसआईपी निवेश के वक्त बाजार गिरा हुआ है, तो आपको उसी रकम में म्यूचुअल फंड की ज्यादा यूनिट्स मिल जाएंगी। लेकिन अगर बाजार तेजी पर है, तो कम यूनिट्स मिलेंगी। इन उतार-चढ़ावों के बीच आप हर महीने नियमित निवेश करेंगे, तो आपकी कुल लागत बहुत अधिक या बहुत कम की बजाय औसत रहेगी। इसकी वजह से आपके निवेश पर बाजार की उथल-पुथल का ज्यादा असर नहीं पड़ता और लंबी अवधि के दौरान अच्छा रिटर्न मिलता है। खास तौर पर बाजार में गिरावट का दौर चल रहा हो, तो एसआईपी के जरिये किए गये निवेश पर मिलने वाला रिटर्न एकमुश्त निवेश के रिटर्न से बेहतर रहता है। एसआईपी के इसी फायदे की वजह से यह सलाह भी दी जाती है कि अगर आपके पास निवेश के लिए बड़ी रकम मौजूद है, तो भी उसे एक साथ बाजार में डालने की जगह उसे 12 महीने या कम से कम छह महीने की SIP में फैलाकर निवेश करें, ताकि आपको एवरेजिंग का फायदा मिले और जोखिम कम रहे।
वित्तीय अनुशासन का लाभ
आम निवेशकों के लिए अपने इनवेस्टमेंट प्लान पर टिके रहना आसान नहीं होता। कभी पैसों की फिजूलखर्ची निवेश में बाधक बन जाती है, तो कई बार शेयर बाजार की उथल-पुथल से डरकर लोग पैसे लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते या फिर निवेश किए गए पैसे गिरावट के दौर में घबराकर बाहर निकाल लेते हैं। इसके बाद तेजी आने पर मौका चूक जाने पर अफसोस करना पड़ता है। लेकिन एसआईपी निवेशकों को वित्तीय अनुशासन में ढालकर इन उलझनों से बचा सकता है। आपके निर्देश देने पर एसआईपी की तय रकम हर महीने आपके बैंक खाते से अपने आप डेबिट होकर इनवेस्ट कर दी जाती है। यह वित्तीय अनुशासन लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन की सबसे बड़ी कुंजी है। इसलिए अगर आप बाजार में इनवेस्ट करना चाहते हैं, तो एकमुश्त बड़ी रकम जमा होने का इंतजार किए बिना एसआईपी के जरिये छोटी से छोटी रकम से निवेश की शुरुआत कर सकते हैं। हां, यह बात जरूर याद रखें कि इक्विटी में निवेश किसी भी ढंग से किया जाए, उसमें कुछ न कुछ जोखिम रहता है और पिछला प्रदर्शन भविष्य में वैसे ही रिटर्न की गारंटी नहीं दे सकता। इसलिए निवेश का फैसला करने से पहले अपने रिस्क प्रोफाइल को ध्यान में रखें और जरूरत पड़ने पर अपने निवेश सलाहकार से सलाह-मशविरा भी कर लें।