आदिल शेट्टी
वास्तव में लाइफ इंश्योरेंस का उद्देश्य आपकी गैर-मौजूदगी में आपके आश्रितों की वित्तीय रूप से मदद करना है। हालांकि, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसियां अपने एंडाउमेंट प्लान और यूलिप जैसे प्रोडक्ट के माध्यम से इंवेस्टमेंट और टैक्स सेविंग भी प्रदान करती हैं। वास्तव में, आज के दौर में (25 से 35 साल की उम्र के) अधिकतर युवा कामकाजी अपना पैसा इंश्योरेंस प्रोडक्ट में लगाते हैं क्योंकि वे अपने पैसे से इंवेस्टमेंट, इंश्योरेंस और टैक्स कटौती का तिहरा लाभ पाना चाहते हैं। लाइफ इंश्योरेंस एक पारंपरिक प्रोडक्ट तो है ही, साथ ही यह किसी भी कामकाजी व्यक्ति द्वारा खरीदा जाने वाला प्रायः पहला फाइनेंशियल प्रोडक्ट भी है। बैंकबाजार द्वारा 12 मेट्रो और नॉन-मेट्रो शहरों में किए गए एस्पिरेशन इंडेक्स सर्वे से पता चला है कि आज के दौर में 72% मिलेनियल्स लाइफ इंश्योरेंस प्रोडक्ट खरीदते हैं।
इंवेस्टमेंट और इंश्योरेंस को अलग अलग रखने पर विचार करें
खुद को इंश्योर करने और इंवेस्ट करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि दोनों में अलग अलग पैसा लगाया जाए। आप अपने जीवन को एक टर्म प्लान के माध्यम से इंश्योर कर सकते हैं जिसकी लागत बहुत कम आती है, और अपने इंवेस्टमेंट को म्यूचुअल फंड, पीपीएफ, ईपीएफ, बॉन्ड, डिपॉजिट, गोल्ड, आदि में बांट सकते हैं, जहां इंवेस्टर के लिए आम तौर पर ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी (लचीलापन) होती है। उदाहरण के लिए, अगर आपकी उम्र 30 साल है, धूम्रपान नहीं करते हैं, साल में 5 लाख रुपए वेतन कमा रहे हैं, और अगले 30 सालों के लिए 50 लाख रुपए का लाइफ कवर चाहते हैं, तो आपके लिए एक टर्म इंश्योरेंस का सालाना प्रीमियम 4,222 रुपए से शुरू होगा।
अगर आप लाइफ इंश्योरेंस के अन्य मोड से इसी तरह का कवर लेते हैं तो उसके लिए आपको अधिक प्रीमियम देना पड़ेगा क्योंकि उन मोड में आपको इंवेस्टमेंट लाभ भी मिलता है जो कि एक टर्म प्लान में नहीं मिलता। इसलिए, इंवेस्टमेंट और इंश्योरेंस को अलग अलग लेना ही फायदे का सौदा है। आप छोटी राशि से अपने जीवन को सुरक्षित कर सकते हैं, और बाकी पैसे को अधिक आकर्षक एसेट में इंवेस्ट कर सकते हैं। आइए, कुछ और विकल्पों पर नजर डालते हैं जिनमें आप सेक्शन 80 (सी) के तहत टैक्स बचाने के साथ ही वेल्थ क्रिएट (धन सृजन) कर सकते हैं।
इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस): ईएलएसएस म्यूचुअल फंड में आकर्षक रिटर्न देने की ज्यादा संभावना होती है, क्योंकि इन फंड्स को मार्केट-लिंक्ड एसेट में इंवेस्ट किया जाता है। इस तरह के इंवेस्टमेंट में कुछ हद तक रिस्क भी शामिल होता है लेकिन पोर्टफोलियो को लंबे समय के लिए डायवर्सिफाई करके रिस्क को कम किया जा सकता है। आप ईएलएसएस में इंवेस्ट कर एक वित्तीय वर्ष में सेक्शन 80 (सी) के तहत 1.5 लाख रुपए तक की टैक्स कटौती का लाभ उठा सकते हैं।
पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ): अगर आप बहुत ज्यादा रिस्क नहीं उठाना चाहते हैं तो यह इंवेस्टमेंट आपके लिए ही है। पीपीएफ में आपके इंवेस्टमेंट पर प्रति वर्ष 7.6% का ब्याज मिलता है। आप सेक्शन 80 (सी) के तहत टैक्स कटौती का लाभ भी हासिल कर सकते हैं। इसमें आप एक साल में 500 रुपए की छोटी राशि भी इंवेस्ट कर सकते हैं। हालांकि, इस स्कीम का मैच्योरिटी पीरियड 15 साल है, लेकिन आप सातवें साल के बाद से इसमें से कभी भी पैसा निकाल सकते हैं।
नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (एनएससी): यह एक निश्चित आय वाली इंवेस्टमेंट स्कीम है और इसमें किया जाने वाला कोई भी इंवेस्टमेंट टैक्स-फ्री होता है। एनएससी में प्रति वर्ष 7.6% की ब्याज दर मिलती है। अंतिम वर्ष को छोड़कर इसमें रिटर्न टैक्स से मुक्त है। एनएससी में आप 100 रुपए की छोटी राशि भी इंवेस्ट कर सकते हैं, हालांकि इसमें अधिकतम इंवेस्टमेंट की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
पांच साल के लिए एफडी: ‘पांच साल के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट’ वाली कई स्कीम उपलब्ध हैं। ‘पांच साल के लिए डिपॉजिट’ वाली स्कीम में आपको 6.5% से 8.50% के बीच ब्याज दर मिलता है। आप इस स्कीम में अपनी मनचाही राशि इंवेस्ट कर सकते हैं। हालांकि फिक्स्ड डिपॉजिट में अर्जित ब्याज टैक्सेबल (कर-योग्य) होती है, लेकिन इंवेस्टमेंट राशि सेक्शन 80 (सी) के तहत 1.5 लाख रुपए तक टैक्स से मुक्त है।
लेखक बैंक बाजार डॉट कॉम के सीईओ हैं।