कच्चे तेल पर काफी हद तक निर्भरता रखने वाले सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था क्रू़ड ऑयल में गिरावट के चलते लगातार लुढ़क रही है। इस हालात से निपटने के लिए सऊदी अरब ने अब सरकारी संपत्तियों को बेचने का फैसला लिया है। इसके अलावा जनता पर आयकर भी लगाया जा सकता है। दरअसल कच्चे तेल में गिरावट के चलते सऊदी की शाही सरकार के खजाने में कमी आई है। सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जादान ने कहा कि सरकार ने अगले 4 से 5 सालों में एजुकेशन, हेल्थकेयर और वॉटर सेक्टर में संपत्तियों के निजीकरण के जरिए 13.3 अरब डॉलर की रकम जुटाने का लक्ष्य रखा है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक जादान ने कहा कि सरकार वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। कोरोना के संकट से निपटने में अभी दुनिया को वक्त लगने वाला है। ऐसे में सऊदी किंगडम इनकम टैक्स के जरिए कुछ फाइनेंस जुटा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था में इस साल 6.8 पर्सेंट की गिरावट आ सकती है। बीते 30 सालों में सऊदी इकॉनमी में यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट होगी। दरअसल सऊदी अरब इस दौर में दोहरे झटके से गुजर रहा है। एक तरफ सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल में गिरावट से पस्त है तो दूसरी तरफ कोरोना वायरस ने संकट को और गहरा कर दिया है।
इससे पहले सऊदी सरकार आर्थिक संकट से निपटने के लिए वैट को तीन गुना तक बढ़ा चुकी है। इसके अलावा इंपोर्ट फीस में भी इजाफा किया गया है। यही नहीं सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले कुछ लाभों में भी कटौती की गई है। सऊदी सरकार में व्यक्तिगत तौर पर टैक्स से छूट रही है। इसके उलट सरकार नागरिकों को कई चीजों में सब्सिडी ही देती रही है। लेकिन अब क्रूड ऑयल की कीमतों में लगातार गिरावट के चलते सरकार को सब्सिडी वापस लेने के साथ ही इनकम टैक्स लगाने पर भी विचार करना पड़ रहा है।
हालांकि सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार खर्च में कटौती की योजना नहीं बना रही है। जादान ने कहा कि सरकार ने कुछ खर्चों को एक बार फिर से आवंटित किया है, लेकिन अब भी 2020 में सरकार की ओर से 1 ट्रिलियन डॉलर का खर्च किए जाने की योजना है।