कई पूर्व सांसदों पर अपने कार्यकाल के बाद भी सरकारी आवास पर कब्जा रखने को लेकर किराए के तौर पर 93 लाख रुपए से अधिक बकाया है। सबसे अधिक बकाया राज्यसभा के पूर्व सदस्य गिरीश कुमार सांघी पर 23 लाख रुपए से अधिक का है। सांघी हाल में ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे। 31 दिसंबर 2015 तक बकाए की स्थिति को दर्शाने वाला दस्तावेज संपत्ति निदेशालय ने आरटीआइ अधिनियम के तहत आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को मुहैया कराया है।

हालांकि सांघी का कहना है कि उन्होंने 2010 में ही अपने आवास को खाली कर दिया था, जब उनकी सदस्यता समाप्त हो गई थी। उसके बाद 7, तालकटोरा स्थित उनका बंगला किसी और को आबंटित किया गया था। उन्होंने कहा कि आवास किसी और को आबंटित किया गया है, पर बकाया मेरे खिलाफ दिखाया जा रहा है। उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि मकान पर किसका कब्जा है। मेरा या किसी और का। अगर मकान मेरे पास है तो मैं रकम का भुगतान करूंगा। पर अगर मकान किसी और के पास है तो उसे इसको खाली कर देना चाहिए।

सांघी बोले- मुझे नोटिस मिला है और मैंने उन्हें जवाब दे दिया है और उनसे स्पष्ट करने को कहा कि क्या यह मेरा नाम है या किसी अन्य व्यक्ति का। कुल 56 सांसद हैं जिनके खिलाफ 1969 रुपए से लेकर 23.07 लाख रुपए बकाया हैं। सूची में जो प्रमुख पूर्व सांसद शामिल हैं उसमें यशवंत सिन्हा (3.84 लाख रुपए), रमाकांत यादव (2.05 लाख रुपए) और दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव (3.58 लाख) शामिल हैं। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा पर (1.47 लाख), राजाराम पाल (4.48 लाख रुपए), क्रिकेटर से नेता बने मोहम्मद अजहरुद्दीन पर (2.5 लाख रुपए), राजद नेता मंगनी लाल मंडल पर (4.42 लाख रुपए) का बकाया है।

अग्रवाल ने दावा किया कि धनी पूर्व सांसद (सांघी) पहले सरकारी निवास पर अत्यधिक खर्च करने के लिए जाने-जाते थे। उन्होंने नई दिल्ली के लुटियंस जोन में सरकारी बंगले के लिए सारे नियम और मानदंडों को तोड़ दिया। एक मंजिला बंगले को दो मंजिला बंगले में भी तब्दील कर दिया गया। बकाया किराए को पेंशन से स्वत: समायोजित करने का अवश्य प्रावधान होना चाहिए। चुनाव आयोग को पूर्व और मौजूदा सांसदों और राज्य के विधायकों को तब तक कोई चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए जब तक कि वे अपने लंबित बकाये का भुगतान नहीं कर देते और हक खोने के बाद समय से अधिक समय तक सरकारी आवास पर कब्जा रखने का दोषी नहीं हो।