भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डेप्युटी गवनर्र विरल आचार्य ने कहा है कि केंद्रीय बैंक को कर्मचारियों की निजी करियर ग्रोथ और प्रमोशन से पहले जनहित को ध्यान में रखते हुए सत्य बोलना चाहिए। अपनी पुस्तक ‘क्वेस्ट फॉर रीस्टोरिंग फाइनेंशियल स्टेबिलिटी इन इंडिया’ में विरल आचार्य ने लिखा है कि दुनिया भर में सेंट्रल बैंकर्स को सरकार के दखल का सामना करना पड़ रहा है। ग्रोथ की चुनौतियों के चलते यह स्थिति पैदा हुई है और जीडीपी के अनुपात में सरकारी कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के बाद केंद्रीय बैंक के समक्ष यह चुनौती और बढ़ जाएगी।

विरल आचार्य़ का कहना है कि कोरोना काल के बाद सरकारों की ओर से दवाब होगा कि कर्ज देने में इजाफा किया जाए। इसके अलावा पुराने बकाये न मिलने को भी सहन करने का दबाव डाला जा सकता है। पिछले साल जून में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले ही रिजर्व बैंक छोड़ने वाले विरल आचार्य ने लिखा, ‘केंद्रीय बैंक को अर्थव्यवस्था के सांस्थानिक रक्षक के तौर पर अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए और आर्थिक स्थिरता की स्थिति को बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए।’

यही नहीं उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे के प्रभुत्व से बचने के लिए केंद्रीय बैंक को कुछ उपायों पर भी काम करना होगा। विरल आचार्य़ ने लिखा कि केंद्रीय बैंक को लॉन्ग टर्म में वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करते हुए काम करना होगा। इसके अलावा सरकारी फैसलों के मुकाबले अपनी स्वतंत्रता और स्वायत्ता को बरकरार रखना होगा। इसके अलावा किसी भी फैसले में पॉलिसी रूल्स को महत्व देना चाहिए।

विरल आचार्य ने लिखा कि असहमति और विविधतापूर्ण सोच से संवाद का स्तर ऊपर उठता है। इससे बेहतर विचार सामने आते हैं और बेहतरीन निर्णय हो पाते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी लिखा कि असल में असहमति और विविधता को मुश्किल से ही स्वीकार किया जाता है। गौरतलब है कि पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव को सरकार के मुकाबले केंद्रीय बैंक की राय रखने के लिए जाना जाता है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान डी. सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कमी की कोशिशों का विरोध किया था और अपने फैसले पर अडिग रहे थे।