रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि वह न तो सुपरमैन हैं और न ही जेम्स बांड। लेकिन वह एक ऐसे ‘अकेले रेंजर’ के रूप में उभरकर सामने आए हैं जो ब्याज दरों में कटौती और केंद्रीय बैंक को कमजोर करने के ‘रुग्ण मानसिक’ प्रयासों से लड़ रहा है।

वर्ष 2014 समाप्त होने जा रहा है और राजन ने गर्वनर के रूप में अपना एक साल पूरा कर लिया है। लगता है कि वह अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पूर्व प्रमुख बेन बर्नान्के के इस सिद्धान्त पर चल रहे हैं कि केंद्रीय बैंक को ‘‘ लघु अवधि की राजनीतिक चिंताओं को भूलकर नीतियां बनानी चाहिए।’’

भारतीय उद्योग जगत की ओर से ब्याज दरों में कटौती की मांग लगातार उठाती रही है, लेकिन राजन ने मुद्रास्फीति के खिलाफ अपनी लड़ाई में अब तक एक बार भी ढील नहीं दी है। उल्टे साल के शुरू में तो उन्होंने नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर सभी को हैरान कर दिया।

एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर पद में कुछ ऐसी बात है कि जो भी उसको संभालने वाले व्यक्ति को एक अलग तरह का व्यक्ति बना देती है। वह किसी की मांग के आगे नहीं झुकता, चाहे यह मांग उद्योग जगत की ओर से आए या सरकार की ओर से, वह उसे तभी पूरा करता है जबकि रिजर्व बैंक की दृष्टि से वह उचित हो।

हालांकि, राजन ने कुछ उम्मीद जरूर जगाई है। उन्होंने इसी महीने संकेत दिया है कि यदि मुद्रास्फीति के संतोषजनक पर होने के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं, तो वह फरवरी में ब्याज दरों में कटौती पर विचार कर सकते हैं।

मई में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐसी चर्चा चली थी कि राजन को रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद छोड़ना होगा। इसके अलावा उन्हें नये प्रस्तावित ब्रिक्स बैंक का पहला अध्यक्ष बनाने की अटकलें भी चलीं। एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री राजन ने सितंबर, 2013 में रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद संभाला था। उद्योग में उनके एक विरोधी का कहना है कि रिजर्व बैंक के कदमों का दर्द उद्योग को झेलना पड़ रहा है।

अपनी बेबाकी के लिए प्रसिद्ध राजन ने रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता को बचाने के लिए मजबूती से प्रयास किए। उन्होंने सार्वजनिक रूप से वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) की सिफारिशों की आलोचना की। एफएसएलआरसी ने रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारों व कामकाज की तर्ज पर एकीकृत वित्तीय क्षेत्र नियामक के गठन का सुझाव दिया था।

एफएसएलआरसी के चेयरमैन और रिपोर्ट के लेखक बी एन श्रीकृष्ण ने इसके जवाब में कहा कि राजन भी कभी इसी तरह का विचार रखते हैं, लेकिन गवर्नर बनने के बाद वह इन सिफारिशों का विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, इन आलोचनाओं के बीच रिजर्व बैंक महंगाई के खिलाफ अपने संघर्ष में सफल होता दिखा। नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति पांच साल के निचले 4.4 प्रतिशत पर आ गई है। वहीं थोक मुद्रास्फीति शून्य पर आ गई है।