हरियाणा में विधानसभा में निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पारित हुआ है। भले ही राज्य में राजनीतिक संदेश देने के लिए सरकार इसे मास्टरस्ट्रोक मान रही है, लेकिन आर्थिक जानकारों के मुताबिक यह फैसला घातक साबित हो सकता है। इंडस्ट्री लीडर्स और इकॉनमिस्ट्स के मुताबिक स्थानीय लोगों को रोजगार में 75 फीसदी रिजर्वेशन दिए जाने से नौकरियां पैदा होने की गारंटी नहीं है। इससे उलट राज्य में मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, आईटी और हाउसिंग सेक्टर में उत्साह कमजोर भी हो सकता है। इस कानून से क्षेत्रीय श्रेष्ठता का बोध पैदा होगा और इससे भविष्य में रोजगार के लिए संकट पैदा होगा। इसकी वजह यह है कि आमतौर पर कंपनियां कॉस्मोपॉलिटन शहरों को ही पसंद करती हैं।

ऑटो सेक्टर की दिग्गज कंपनी मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव भी इस कानून के पक्ष में नहीं हैं। Live Mint से बातचीत करते हुए भार्गव ने कहा, ‘सीआईआई ने राज्य सरकार को ज्ञापन देते हुए कहा है कि इससे राज्य में प्रतिस्पर्धी माहौल पैदा होने की बजाय और समस्या पैदा होगी। मैं भी सीआईआई की चिंताओं से सहमत हूं।’ इंडस्ट्री के कई अन्य दिग्गजों का भी कहना है कि नौकरियों में आरक्षण से नई जॉब्स पैदा होने की बहुत ज्यादा संभावना नहीं है। दरअसल हरियाणा में यह फैसला ऐसे समय में हुआ है, जब राज्य में बेरोजगारी की दर अपने उच्चतम स्तर पर रही है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के डेटा के मुताबिक अक्टूबर महीने में राज्य में बेरोजगारी की दर 27.3 पर्सेंट रही है, जबकि राष्ट्रीय औसत 6.98 पर्सेंट का ही रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राज्य सरकार के फैसल में कोरी राजनीति है और इसमें आर्थिक पहलुओं पर फोकस नहीं किया गया है। बता दें कि राज्य में 5 नवंबर को ही उस बिल को मंजूरी दी गई है, जिसमें स्थानीय लोगों को नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई है। यह आरक्षण महीने में 50,000 रुपये तक की नौकरियों के लिए रखा गया है।

कंपनियों को दिया गया है तीन महीने का टाइम: यही नहीं इस विधेयक में इंडस्ट्री से नियम को अगले तीन महीनों में लागू करने की बात कही गई है। ऐसा न किए जाने पर कंपनियों पर 25 हजार रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक का फाइन लग सकता है। यह बिल सभी निजी कंपनियों, सोसायटीज, ट्रस्ट, पार्टनरशिप फर्म्स एवं अन्य सभी गैर-सरकारी संस्थानों पर लागू होता है।