भारतीय रिजर्व बैंक, एलआईसी और एम्फी (Association of Mutual Funds) की ओर से नॉमिनी रजिस्ट्रेशन को लेकर दिए गए विज्ञापनों को अपने टीवी पर अक्सर देखा या फिर रेडियों में सुना होगा। इन विज्ञापनों में जोर देकर कहा जाता है कि आप अपने निवेश, बीमा पॉलिसी में नॉमिनी का रजिस्ट्रेशन जरूर कराए।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

नॉमिनी के अर्थ होता है मनोनीत व्यक्ति। यानी ऐसा व्यक्ति, जिसे आप अधिकारिक तौर पर किसी कार्य को करने के चुनते हैं। नॉमिनी की भूमिका ट्रस्टी या अभिभावक या संपत्ति के संरक्षक की होती है। नॉमिनी उत्तराधिकारियों का प्रतिनिधित्व करता है।

क्या नॉमिनी और उत्तराधिकारी के समान अधिकार है?

मौजूदा कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के उत्तराधिकारी का फैसला केवल उसकी वसीयत या फिर मरने वाले व्यक्ति के धर्म पर आधार पर जन्म के वक्त लागू उत्तराधिकारी कानून के मुताबिक ही किया जाता है। ऐसे में नॉमिनी और उत्तराधिकारी का कार्य बिल्कुल अलग- अलग हो जाता है।

भारत में बढ़ता लावारिस धन  

Recoversy के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 31 दिसंबर 2020 तक लगभग 1,59,000 करोड़ रुपये का लावारिस धन था। इसमें निवेशक शिक्षा और सुरक्षा कोष में 28,800 करोड़ रुपये, म्यूचुअल फंड में 24,000 करोड़ रुपये, कॉर्पोरेट लाभांश में 5,454 करोड़ रुपये, पीपीएफ खातों 48,000 करोड़ रुपये, यूटीआई योजनाओं में 11,700 करोड़ रुपये, बैंक खातों में 25, 860 करोड़ रुपये और बीमा पॉलिसियों में 15,166 करोड़ रुपये में लावारिस पड़े हुए हैं। इन पैसों के लावारिस होने की बड़ी वजह इन निवेशों में नॉमिनी का ना होना है, जिस कारण इस घन को किसी भी व्यक्ति की ओर से क्लेम नहीं किया गया है।

नॉमिनी को मिल सकती है कानूनी उत्तराधिकारी से चुनौती

अगर वसीयत और नॉमिनी में अलग-अलग व्यक्तियों का नाम होता है तो इससे कानूनी अड़चन खड़ी हो सकती है। उदाहरण के लिए अगर कोई रिटायर व्यक्ति अकेला रहता है, लेकिन उसकी देखभाल किसी पड़ोसी, रिश्तेदार या फिर उसके घर में मौजूद हेल्पर करता है। वह उसे नॉमिनी बनाने का फैसला करता है, लेकिन वसीयत में वे पहले ही या उत्तराधिकार कानून के हिसाब से उनके बच्चे वारिस हैं तो नॉमिनी नहीं, कानून की नजर में वे लाभार्थी माने जाएंगे।