कुछ समय पहले इकोनॉमिस्टों ने अपने सर्वे में यह बात कही थी कि बैंकों में डिपॉजिट्स ने निवेशकों को अब महंगाई के मुकाबने नेगेटिव रिटर्न देना शुरू कर दिया है। अब वो बात साबित होती दिखाई दे रही है। आरबीआई की ओर से जारी महंगाई के अनुमान को देखकर यह अब साफतौर पर कही जा सकती है कि बैंकों की फिक्स्ड डिपॉजिट से होने वाली कमाई डिपेंड सीनियर सिटीजंस और दूसरे निवेशकों को मिल रहा ब्याज वास्तविक महंगाई से कम है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी ताजा मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक में चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति के 5.3 फीसदी पर रहने का अनुमान जताया है।
महंगाई दर के मुकाबले कम रिटर्न दे रही हैं बैंक एफडी
आरबीआई ने पिछले हफ्ते कहा कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति के 2021-22 के दौरान 5.3 फीसदी के स्तर पर रहने का अनुमान है। इस स्तर पर देश के सबसे बड़े लेंडर भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई के पास एक वर्ष के लिए एफडी कराने पर नकारात्मक ब्याज मिलेगा और बचतकर्ता के लिए वास्तविक ब्याज दर नकारात्मक 0.3 फीसदी होगी। वास्तविक ब्याज दर बैंक द्वारा दी जा रही ब्याज दर में मुद्रास्फीति की दर को घटाकर जानी जा सकती है। अगस्त में खुदरा महंगाई दर 5.3 फीसदी देखने को मिली है।
पोस्ट ऑफिस स्कीम दे रही हैं ज्यादा रिटर्न
इसी तरह 2-3 साल की अवधि के लिए मिलने वाली ब्याज दर, चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमानित मुद्रास्फीति से कम है। निजी क्षेत्र का अग्रणी एचडीएफसी बैंक 1-2 साल की फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए 4.90 फीसदी ब्याज दर ऑफर करता है। जबकि 2-3 साल के लिए यह यह दर 5.15 फीसदी है। हालांकि, सरकार द्वारा चलाई जाने वाली छोटी बचत योजनाएं, बैंकों की सावधि जमा दरों की तुलना में बेहतर रिटर्न दे रही हैं। छोटी बचत योजनाओं के तहत 1-3 साल की सावधि जमाओं के लिए ब्याज दर 5.5 फीसदी है, जो मुद्रास्फीति लक्ष्य से अधिक है।
क्या कहते हैं जानकार
ग्रांट थॉर्नटन इंडिया के पार्टनर विवेक अय्यर ने कहा कि वास्तविक दरें कुछ समय के लिए नकारात्मक रहने वाली हैं और यह जरूरी है कि लोग वित्तीय साक्षरता के आधार पर सही निवेश विकल्प को चुनें। रिसर्जेंट इंडिया के प्रबंध निदेशक ज्योति प्रकाश गाडिया ने कहा कि अधिक जोखिम वाले विकल्पों ने अभूतपूर्व वृद्धि दिखाई है, जिसके मुद्रास्फीति पर काबू पाने या बैंक जमा दरों में बढ़ोतरी होने तक जारी रहने की उम्मीद है।