इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आईपीओ के दौर में बाबा रामदेव की रुचि सोया के एफपीओ यानी फॉलो ऑन पब्लिक ऑफरिंग की काफी चर्चा चल रही है। मामला दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। वास्तव रुचि सोया के प्रमोटर्स अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए 4300 करोड़ रुपए का एफपीओ लेकर आ रहे हैं। अब सवाल यह है कि आखिर एफपीओ होता क्या है और यह आईपीओ से कितना अलग है। वहीं निवेशकों को इसका क्या फायदा होता है। आइए आपको भी बताते हैं।
क्या है एफपीओ?
शेयर बाजार की भाषा में एफपीआ यानी फॉलोऑन पब्लिक ऑफरिंग को दूसरा पब्लिक ऑफर भी कहा जाता है। वास्तव में जब कोई कंपनी पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड होती है और फंड जुटाने के लिए अपने शेयरों को बाजार के माध्यम से बेचती है, उसे फॉलोऑन पब्लिक ऑफरिंग कहा जाता है। इसमें वो लोग भी शेयर खरीद सकते हैं जिन्होंने पहले से ही कंपनी के शेयर लिए हुए हैं। इसमें पुराने और नए दोनों निवेशकों को शेयर खरीदने और मुनाफा कमाने का मौका मिलता है।
आईपीओ क्या है?
अगर बात आईपीओ की करें तो इसे इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग कहा जाता है। इसके तहत कंपनी पूंजी जुटाने के लिए पहली बार शेयर बाजार का रुख करती है। जिसके लिए उसे पहले सेबी से मंजूरी लेनी पड़ती है। जिसके बाद ही कंपनी अपने शेयरों को लिस्ट करने के लिए बाजार में लेकर आती है। आईपीओ फिक्स्ड प्राइस या बुक बिल्डिंग या दोनों तरीकों से पूरा हो सकता है। फिक्स्ड प्राइस में जिस कीमत पर शेयरों की पेशकश की जाती है, वह पहले से तय होती है। बुक बिल्डिंग में शेयरों के लिए कीमत का दायरा तय होता है, जिसके भीतर निवेशक बोली लगाते हैं।
निवेशकों को होता है दोनों में फासदा
जब भी आईपीओ या एफपीओ लाए जाते हैं इसमें प्रमोटर्स के साथ निवेशकों को भी फायदा होता है। दोनों में कम कीमत पर शेयरों को खरीदकर मुनाफावसूली की जा सकती है। जिससे निवेशकों को कम समय में ज्यादा फायदा मिलता है। हालिया दौर में आए आईपीओ में कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। साल के बाकी बचे दिनों में और भी बड़े आईपीओ आने वाले हैं। जिसका फायदा निवेशकों को मिल सकता है।
रुचि सोया का एफपीओ लाने का मकसद
बाबा रामदेव की पंतजलि को रुचि सोया का एफपीओ लाने की जरुरत क्यों पड़ गई, इसका सबसे बड़ा कारण है प्रमोटर्स की हिस्सेदारी को कम करना। मौजूदा समय में कंपनी में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी 98 फीसदी के आसपास है। नए नियमों के अनुसार लिस्टेड कंपनियों के प्रमोटर्स के पास 75 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं होनी चाहिए। वहीं कंपनी एफपीओ से आए रुपयों से अपने कर्जों को कम करेगी और साथ ही अपने कारोबार को बढ़ाने में रुपया लगाएगी।