सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों को अपनी वाणिज्यिक जरूरतों के आधार पर खुद की स्वतंत्र कच्चा तेल आयात नीति बनाने की छूट दे दी है। इस कदम का मकसद परिचालन दक्षता में सुधार लाना है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों इंडियन ऑयल कारपोरेशन को परंपरागत रूप से तेल उत्पादक देशों की राष्ट्रीय कंपनियों से कच्चा तेल लेने की अनुमति रही है। सरकार ने 21 मई 2001 को सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरी कंपनियों को शीर्ष दस विदेशी कंपनियों से तेल खरीदने की अनुमति दी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में इसका फैसला हुआ। मंत्रिमंडल के फैसलों की जानकारी केंद्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दी। उन्होंने बताया कि यह लंबे समय से महसूस किया जा रहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को जिन कंपनियों से कच्चा तेल खरीदने की अनुमति है, उसकी सूची में विस्तार कर उसमें इटली की इनी जैसी दुनिया की प्रमुख कंपनी व रूसी कंपनियों को शामिल किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे कच्चे तेल की खरीद के लिए अधिक कुशल, लचीला व गतिशील नीति उपलब्ध होगी और अंतत: उपभोक्ताओं को लाभ होगा। हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया। अलबत्ता नीति सीवीसी के दिशानिर्देश के अनुरूप होगी। संबंधित निदेशक मंडल से उसकी मंजूरी भी लेनी होगी।
समझा जाता है कि सरकार ने अक्तूबर, 2016 से शुरू हो रहे अगले सत्र के लिए मिलों की ओर से गन्ना किसानों को किए जाने वाला उचित और लाभदायक मूल्य (एफआरपी) 230 रुपए प्रति क्विंटल के स्तर पर बरकार रखा है। सूत्रों के मुताबिक कुछ राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव की वजह से आदर्श आचार संहिता लागू होने की वजह से इस फैसले की घोषणा नहीं की गई है।
सीएसीपी एक सांविधिक निकाय है जो सरकार को प्रमुख कृषि उत्पादों की मूल्य नीति के बारे में सलाह देता है। एफआरपी वह न्यूनतम कीमत है जिसकी गन्ना किसानों को गारंटी होती है। हालांकि, राज्य सरकारों को अपने राज्य सलाह आधारित मूल्य (एसएपी) तय करने की आजादी होती है। मिलें एफआरपी से ऊपर कितनी भी कीमत की पेशकश कर सकती हैं।
मंत्रिमंडल ने दूरसंचार कंपनियों को बिना नीलामी के आबंटित स्पेक्ट्रम का नए उदार नियमों के तहत इस्तेमाल करने की मंजूरी भी दे दी है। उन्हें इसके लिए नियामक ट्राई की सफारिश वाले मूल्य चुकाने होंगे और उसका बाजार मूल्य तय होने पर वे मूल्य को जो भी बकाया होगा उसका भुगतान करेंगे। इस फैसले से रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) चार दूरसंचार सर्किलों में अपने स्पेक्ट्रम का उदारीकरण 1300 करोड़ रुपए जमा करा कर कर सकेगी। इन चार सर्किलों में स्पेक्ट्रम का आबंटन बिना नीलामी के किया गया था।
स्पेक्ट्रम उदारीकरण के तहत दूरसंचार कंपनियों को अपने पास उपलब्ध स्पेक्ट्रम से 3जी और 4जी जैसी मोबाइल सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए किसी भी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने की छूट है। वे नई प्रौद्योगिकी ला सकेंगी व स्पेक्ट्रम के अच्छे से अच्छे उपयोग के लिए वे दूसरी कंपनियों के साथ स्पेक्ट्रम का लेन देन और साझा कर सकती हैं। फैसले का मतलब है कि सरकार की ओर से प्रशासनिक रूप से आबंटित स्पेक्ट्रम जहां भी उपलब्ध होगा और जिसको उदार नियमों के तहत इस्तेमाल की मांग होगी और यदि उसका बाजार निर्धारित मूल्य उपलब्ध नहीं होगा तो इस तरह के मामलों को कीमत के लिए नीलामी पर ट्राई की सिफारिश को अस्थायी कीमत के रूप में स्वीकार कर लिया जाएगा और वास्तविक नीलामी के बाद बकाया राशि की वसूल की जाएगी।
इस तरह आबंटित स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल केवल ऐसी सेवाओं में ही किया जा सकता था जो लाइसेंस में उल्लिखित हैं। मंत्रिमंडल ने इससे पहले फैसला किया था कि स्पेक्ट्रम उदारीकरण बाजार आधारित कीमत के आधार पर किया जाएगा। यह पाया गया कि 800 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम बैंड में कई राज्यों में बाजार कीमत उपलब्ध नहीं है। कुछ जगह यह बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं तो कुछ में इसे (नीलामी में) बेचा नहीं गया। इस तरह के मामले में अन्य स्पेक्ट्रम बैंड में भी सामने आने की अटकलें हैं। बकौल प्रसाद सरकार ने इस मुद्दे पर ट्राई की सिफारिशें मांगी हैं।
मंत्रिमंडल ने बैंक आफ बड़ौदा के एंड्रूय यूल एंड कंपनी को 29.91 करोड़ रुपए के ऋण को कंपनी के शेयरों में बदलने की अनुमति दे दी। इससे अगले तीन महीने में कोलकाता के इस सार्वजनिक उपक्रम के विनिवेश का रास्ता साफ हो गया है।