नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) बोर्ड अपने तत्कालीन एमडी और सीईओ चित्रा रामकृष्ण की तरफ से गंभीर अनियमितताओं और कदाचार की जानकारी होने के बावजूद सेबी (Securities and Exchange Board of India) को सूचित करने में विफल रहा और पूर्व सीईओ के खिलाफ एक्शन लेने के बजाय उन्हें खुशी से इस्तीफा देने दिया।

जब उन्होंने 2 दिसंबर 2016 को इस्तीफा दे दिया तो एनएसई बोर्ड की अध्यक्षता पूर्व वित्त सचिव अशोक चावला ने की थी और इसमें सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक धर्मिष्ठा रावल, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्णा, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के पूर्व सचिव नावेद मसूद, केपीएमजी इंडिया के पूर्व उप मुख्य कार्यकारी दिनेश कनाबर, मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विसेज के चेयरमैन मोहनदास पई, जनरल अटलांटिक एडवाइजरी डायरेक्टर अभय हवलदार, अजीम प्रेमजी, इन्वेस्टमेंट सीआईओ प्रकाश पार्थसारथी के अलावा रवि नारायण, वाइस चेयरमैन और खुद रामकृष्ण शामिल थीं।

सेबी के अनुसार यह जानने के बाद भी कि रामकृष्ण महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय एक “अज्ञात व्यक्ति” के मार्गदर्शन पर निर्भर थी, एनएसई बोर्ड ने उन्हें इस्तीफा देकर बाहर निकलने की अनुमति दी और 2 दिसंबर, 2016 को हुई बोर्ड की बैठक में उनकी संगठन के विकास में उत्कृष्ट योगदान के बारे में प्रशंसा की। अक्टूबर 2019 और दिसंबर 2019 में भेजे गए कारण बताओ नोटिस पर रेगुलेटर ने एनएसई और रामकृष्ण की प्रतिक्रियाओं को सुनने के बाद ये टिप्पणियां कीं।

चित्रा रामकृष्ण के इस्तीफा देने के पांच महीने पहले जुलाई 2016 में कनाबर, पाई और मसूद कंपनी के बोर्ड में शामिल हुए थे। पूर्व एलआईसी प्रमुख एसबी माथुर के NSE अध्यक्ष के रूप में तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद मई 2016 में चावला NSE के अध्यक्ष बने।

पूर्व समूह संचालन अधिकारी और एमडी के सलाहकार आनंद सुब्रमण्यम जिनकी नियुक्ति ने विवाद पैदा किया वो माथुर के कार्यकाल के दौरान एनएसई में शामिल हुए थे। रामकृष्ण की यह नियुक्ति मनमानी थी और एनएसई की नीतियों के अनुसार नही थी। इसके अलावा चित्रा ने एक ‘अज्ञात व्यक्ति’ के साथ गोपनीय जानकारी साझा की और एनएसई को गुमराह किया कि अज्ञात व्यक्ति एक ‘सिद्ध-पुरुष’ था।

एनएसई के एक पूर्व निदेशक के अनुसार (जो रामकृष्ण के पद छोड़ने के समय बोर्ड में थे) अगस्त 2016 के आसपास सेबी ने बोर्ड के साथ संवाद किया था, जिसमें सुब्रमण्यम की नियुक्ति और पारिश्रमिक से जुड़े कथित उल्लंघनों की ओर इशारा किया गया था।

सेबी के बातचीत के बाद (जिसमें सेबी ने बोर्ड को इस मुद्दे की जांच करने के लिए कहा) बोर्ड ने अपनी लेखा परीक्षा समिति के अध्यक्ष दिनेश कनाबर की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया। एक पूर्व निदेशक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “हमने पाया कि सीईओ (रामकृष्ण) द्वारा सुब्रमण्यम को चार साल के लिए उच्च मुआवजे का भुगतान करने में शक्ति का घोर दुरुपयोग किया गया है। मानव संसाधन विभाग ने कहा कि सुब्रमण्यम के मुआवजे से संबंधित मामलों को सीईओ द्वारा अनुमोदित किया गया था।”

द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा संपर्क किए जाने पर न्यायमूर्ति बी एन श्रीकृष्णा ( अगस्त 2013 में बीएन कृष्णा को एनएसई में एक जनहित निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था) ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। चावला और कानाबर ने कॉल और टेक्स्ट संदेशों का जवाब नहीं दिया।

सेबी के 11 फरवरी 2022 के आदेश के अनुसार एनएसई को बार-बार याद दिलाने के बाद भी सेबी को जानकारी प्रदान करने में विफलता, सुब्रमण्यम को एक प्रमुख प्रबंधकीय व्यक्ति (केएमपी) के रूप में नामित करने में विफलता और सेबी से छिपाई गई जानकारी, सेबी की सलाह का सम्मान और कानून के प्रावधानों के प्रति उदासीनता को प्रदर्शित करती है।