नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने आर्थिक क्षेत्र में सुस्ती और अर्थव्यवस्था में निजी निवेश में कमी का संज्ञान लिया है। राजीव कुमार ने कहा कि सरकार ‘अभूतपूर्व समस्या’ का सामना कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए असामान्य कदम उठाने होंगे।
हीरो माइंडमाइन समिट में चर्चा के दौरान राजीव कुमार ने कहा कि भारत सरकार के लिए यह अभूतपूर्व मुद्दा है। पिछले 70 साल से हमने इस तरह की तरलता की स्थिति का सामना नहीं किया है। पूरा वित्तीय सेक्टर डांवाडोल है और कोई भी किसी पर विश्वास नहीं कर रहा है। आपको ऐसे कदम उठाने होंगे जो सामान्य से हटकर हों।
उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि सरकार जो कर सकती है है उसको आवश्यक रूप से वह करना चाहिए जिससे प्राइवेट सेक्टर की आशंकाओं को दूर किया जा सके।’ बाजार में अविश्वास की स्थिति का जिक्र करते हुए नीति आयोग उपाध्यक्ष ने कहा कि यह न सिर्फ सरकार और प्राइवेट सेक्टर के बीच विश्वास का मामला है बल्कि यह प्राइवेट सेक्टर के भीतर भी विश्वास का मुद्दा है।
कोई भी किसी को भी उधार देना नहीं चाहता है। सब ने पैसा दबा रखा है लेकिन वे पैसा निकालना नहीं चाहते हैं। उन्होंने मौजूदा संकट के लिए साल 2004 से 2011 के बीच हाई क्रेडिट ग्रोथ रेट को भी जिम्मेदार ठहराया। इस अवधि में यह 27 फीसदी बढ़ा। इसका परिणाम एनपीए के रूप में सामने आया।
राजीव कुमार ने कहा कि सरकार ने पिछले चार साल में नोटबंदी, जीएसटी, आईबीसी जैसे कई कदम उठाए हैं। इससे सिस्टम में नकदी कम हुई है। उन्होंने कहा कि इससे पहले 10-35 फीसदी नकद होता था जिसे लोग मदद करने के लिए प्रयोग कर लेते थे। यह अब बहुत कम हो गया है। इन सब मुद्दों ने एक साथ मिलकर स्थिति को बहुत ही जटिल बना दिया है।
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इसका कोई सरल जवाब नहीं है। राजीव कुमार ने कहा कि फाइनेंसियल सेक्टर में निराशा को दूर करने के लिए केंद्रीय बजट में पहले ही उपायों की घोषणा की जा चुकी है। इसे आर्थिक वृद्धि दर को मजबूती मिलेगी। मालूम हो कि साल 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर पांच सालों में सबसे कम 6.8 फीसदी रही थी।