When to Exit or Sell Your Mutual Fund Scheme / Units: म्यूचुअल फंड को रिटेल इन्वेस्टर के लिए निवेश का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। लंबी अवधि में नियमित निवेश के जरिए वेल्थ क्रिएशन का यह एक आजमाया हुआ रास्ता है। आम तौर पर निवेशकों को सलाह दी जाती है कि म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू करने के लिए सही वक्त का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। अपनी पसंद की म्यूचुअल फंड स्कीम में सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए वे कभी भी निवेश शुरू कर सकते हैं। लेकिन एक सवाल यह भी है कि म्यूचुअल फंड से एग्जिट का सही समय क्या है? यहां हम इसी सवाल का जवाब जानने की कोशिश करेंगे कि अपनी म्यूचुअल फंड स्कीम से पैसे निकालते यानी यूनिट्स को बेचते समय किन बातों पर गौर करना चाहिए।  

निवेश का लक्ष्य पूरा होने पर करें फैसला 

अगर आपने म्यूचुअल फंड में इनवेस्ट करते समय अपने सामने कोई फाइनेंशियल टारगेट यानी वित्तीय लक्ष्य रखा था, जो अब पूरा हो गया है, तो आप अपने निवेश को निकाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपने बच्चे के हायर एजुकेशन के लिए 10 लाख रुपये जुटाने के मकसद से इक्विटी फंड में निवेश किया था और अब आपके फंड में उतनी रकम जमा हो गई है, तो आप स्कीम से एग्जिट करके अपना काम पूरा कर सकते हैं। अगर आप यह लक्ष्य अनुमानित समय से पहले पूरा कर लेते हैं और आपको फौरन पैसों की जरूरत नहीं है, तो भी आप इक्विटी फंड से जरूरी रकम निकालकर शॉर्ट टर्म एफडी या किसी भी फिक्स्ड रिटर्न वाले इंस्ट्रूमेंट में डाल सकते हैं, ताकि जरूरत के वक्त पैसों की कोई दिक्कत न हो। 

बेहद जरूरी काम या इमरजेंसी 

अगर आपके सामने अचानक कोई बेहद जरूरी काम आ जाता है या कोई आर्थिक या मेडिकल इमरजेंसी आ जाती है, जिसके लिए आपको फौरन फंड की जरूरत है, तो आप अपनी यूनिट्स को बेचकर उसका इंतजाम कर सकते हैं। ऐसी हालत में उतनी ही यूनिट्स बेचनी चाहिए जितने की जरूरत है।  

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पोर्टफोलियो का बैलेंस बनाए रखना

म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय हम आम तौर पर यह तय करते हैं कि इक्विटी में कितने पैसे लगाने हैं और डेट यानी ऋण से जुड़े इंस्ट्रूमेंट्स में कितने, जिसे एसेट अलोकेशन का रेशियो भी कहते हैं। यह रेशियो निवेशक आपके निवेश के लक्ष्य और रिस्क लेने की क्षमता को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। अगर आपने इन बातों को ध्यान में रखते हुए अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी फंड और डेट फंड का कोई अनुपात तय किया है, तो उसे बनाए रखने के लिए आपको कुछ यूनिट्स बेचने की जरूरत पड़ सकती है। मिसाल के तौर पर अगर आपने इक्विटी में 50 फीसदी निवेश का फैसला किया है और बाजार में तेजी के कारण आपके पोर्टफोलियो में इक्विटी फंड की हिस्सेदारी बढ़कर 75 फीसदी हो जाती है, तो आप इक्विटी फंड का कुछ हिस्सा बेचकर डेट फंड में लगा सकते हैं, ताकि आपके पोर्टफोलियो का संतुलन फिर बहाल हो जाए। यह काम आप फंड में स्विचिंग की सुविधा का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं। 

उम्र बढ़ने के साथ पोर्टफोलियो में बदलाव

निवेश सलाहकार आमतौर पर बताते हैं कि अपनो पोर्टफोलियो में इक्विटी फंड और डेट फंड का रेशियो तय करते समय उम्र को भी ध्यान में रखना चाहिए। युवाओं को बेहतर ग्रोथ हासिल करने के लिए इक्विटी में ज्यादा निवेश करने की सलाह दी जाती है, जबकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ पूंजी की सुरक्षा के लिए इक्विटी में एक्सपोजर कम करके डेट में निवेश  बढ़ाने को कहा जाता है। एसेट अलोकेशन का एक जाना पहचाना फॉर्मूला 100 में से अपनी उम्र को घटाने का है। इस फॉर्मूले मुताबिक अगर आपकी उम्र 40 साल है, तो आपको 100-40 = 60 फीसदी रकम इक्विटी में और बाकी 40 फीसदी डेट में लगानी चाहिए। अगर आपने इस फॉर्मूले के हिसाब से 40 साल की उम्र में 60 फीसदी रकम इक्विटी में लगाई थी और अब 50 साल के हो गए हैं, तो आपको अपना एसेट अलोकेशन बदलकर इक्विटी और डेट में 50:50 करना होगा। इसके लिए आपको इक्विटी फंड से कुछ यूनिट्स बेचकर डेट फंड में डालनी होंगी या स्कीम में आंतरिक स्विचिंग की सुविधा का इस्तेमाल करके ऐसा करना होगा। 

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फंड का खराब प्रदर्शन

अगर आपने शुरू में निवेश के लिए जो म्यूचुअल फंड चुना, उसका प्रदर्शन लगातार आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है, तो आपको अपने फैसले की समीक्षा करनी चाहिए। अगर आपको लगता है कि आपका निवेश का फैसला सही नहीं है, तो आपको अपने पैसे मौजूदा स्कीम से निकालकर कहीं और लगाने की जरूरत पड़ सकते है। हालांकि ऐसा करने से पहले इस बात को पूरी तरह कन्फर्म कर लें कि आपका मौजूदा फंड वाकई खराब प्रदर्शन कर रहा है। इसके लिए आप उस फंड के प्रदर्शन की तुलना उसी कैटेगरी के दूसरे फंड्स के साथ कर सकते हैं।

अगर कोई फंड लंबी अवधि, यानी तीन साल या उससे अधिक ज्यादा समय तक लगातार अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन करता है, तो उस म्यूचुअल फंड से एग्जिट करना सही फैसला हो सकता है। लेकिन महज 6 महीने या एक साल के प्रदर्शन में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के आधार पर जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचें। कोई फंड बाजार की अलग-अलग स्थितियों में कैसा प्रदर्शन करता है, इसका सटीक समझ लॉन्ग टर्म नजरिये को ध्यान में रखकर ही बनाई जा सकती है। 

फंड में बड़ा बदलाव

अगर किसी फंड के स्ट्रक्चर, मैनेजमेंट या फिलॉसफी में कोई अहम बदलाव होता है, जिससे आपका लक्ष्य मेल नहीं खाता, तो भी आप उसमें किए गए अपने निवेश पर फिर से विचार कर सकते हैं। अगर सारी बातों पर अच्छी तरह सोचने के बाद आपको लगता है कि इस फंड में बने रहना आपके लिए ठीक नहीं है, तो आप उस म्यूचुअल फंड को अलविदा कहने का फैसला कर सकते हैं।

घबराकर न बेचें अपनी म्यूचुअल फंड यूनिट

म्यूचुअल फंड में आमतौर पर लंबी अवधि का निवेश बेहतर रिटर्न देता है। इक्विटी पर फोकस करने वाली स्कीम के लिए तो यह बात और भी सटीक बैठती है, क्योंकि इक्विटी फंड के जरिये अधिकांश पैसे शेयरों में लगाए जाते हैं और जहां बेहतर रिटर्न के लिए लंबी अवधि का निवेश जरूरी है। इसीलिए बाजार में तेजी से उतार-चढ़ाव होने पर घबराकर या अगर मुनाफे में हैं, तो लालच में आकर अपनी म्यूचुअल फंड स्कीम से एग्जिट न करें। अगर आपने एक्टिव फंड में निवेश किया है, तो बाजार की परिस्थियों को देखकर पोर्टफोलियो में जरूरी बदलाव करने का काम अनुभवी और बाजार के जानकार फंड मैनेजर को करना है। अगर आपने सोच-समझकर स्कीम का चुनाव किया है, तो उसे थोड़ा वक्त दें और हड़बड़ी में यूनिट बेचने का फैसला न करें। अगर आपके पैसे किसी ब्रॉड बेस्ड इंडेक्स फंड यानी पैसिव फंड में लगे हैं, तो भी धैर्य रखें। आम तौर पर भारतीय इंडेक्स लंबी अवधि में पॉजिटिव रिटर्न ही देते रहे हैं। 

टैक्स प्रावधानों का भी रखें ध्यान 

म्यूचुअल फंड से एग्जिट करते समय उससे जुड़े टैक्स प्रावधानों का ध्यान रखना भी जरूरी है। अलग-अलग कैटेगरी के म्यूचुअल फंड पर लागू टैक्स प्रावधानों में अंतर होता है। मिसाल के तौर पर डेट फंड से हुए मुनाफे और आय पर कोई छूट नहीं है। उसे सीधे तौर पर आपकी आय में जोड़कर स्लैब रेट से टैक्स लगता है। जबकि इक्विटी फंड में निवेश किए एक साल से कम समय हुआ है, तो उसकी यूनिट्स के रिडेम्पशन यानी बेचने पर 15 फीसदी शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देने पड़ सकता है। वहीं, इक्विटी फंड को 1 साल से ज्यादा समय होने के बाद बेचने पर अगर एक साल में 1 लाख रुपये से ज्यादा का मुनाफा होता है, तो 10 फीसदी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना पड़ सकता है। म्यूचुअल फंड की उसी स्कीम में स्विच करने पर भी उसे रिडेम्पशन माना जाता है। इसलिए इस बारे में कोई भी फैसला करने से पहले टैक्स के लिहाज से उसके असर को भी अच्छी तरह से समझ लें।