बैंकिंग क्षेत्र में संकट को देखते हुए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बोर्ड्स से अपने नामित निदेशकों को हटाने की मांग की थी। वित्त मंत्रालय से जुड़े सूत्रों ने कहा है कि केंद्र सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया है। सरकार ने कहा है कि बैंकिंग नियामक की मौजूदगी महत्वपूर्ण है। पंजाब नेशनल बैंक में 13 हजार करोड़ रुपये के लेटर ऑफ अंडरटेकिंग फ्रॉड के सामने आने के बाद से ही आरबीआई इन मुद्दों पर सरकार के साथ चर्चा करता रहा है। सूत्रों ने कहा है कि सरकार चाहती है कि RBI द्वारा नामित निदेशक बैंकों के बोर्ड्स में बने रहें।
सरकार RBI को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नियमन से जुड़ी अतिरिक्त शक्तियां देने के पक्ष में भी नहीं है। सूत्रों के अनुसार, सरकार का मानना है कि केंद्रीय बैंक के पास पहले से ही पर्याप्त शक्तियां हैं। सरकार को भेजे गए पत्र में RBI ने कहा था कि उसके नामित निदेशकों को सरकारी बैंकों के प्रबंधन पैनल से दूर रखा जाए, जो कि क्रेडिट से जुड़े निर्णय लेते हैं ताकि हितों के टकराव से बचा जा सके। यह मांग RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी की थी और अब वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल भी ऐसा ही चाहते हैं।
पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी से जुड़ा घोटाला सामने आने के बाद, सरकार ने RBI की ओर से निगरानी में चूक पर उंगली उठाई थी। अपने जवाब में RBI ने तर्क दिया था कि ‘उसकी निगरानी प्रक्रिया में बैंकों के ऑडिट की व्यवस्था नहीं है।’ पटेल ने निजी बैंकों की तुलना में सरकारी बैंकों को लेकर RBI के शक्तिहीन होने की भी बात कही थी।
RBI के पास निजी बैंकों के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर को हटाने और उन्हें नियुक्त करने की शक्ति है, मगर सरकारी बैंकों पर नहीं। इसके अलावा RBI निजी बैंकों के निदेशकों की बैठक बुला सकता है, ऑब्जर्वर नियुक्त कर सकता है, प्रबंधन और अन्य विभागों के अधिकारियों को हटा सकता है, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के आदेश को दरकिनार कर सकता है।
RBI का तर्क है कि एक बैंकिंग रेग्युलेटर होने के नाते, उसे बैंकों के बोर्ड्स में नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे हितों का टकराव होता है। कुल ग्यारह सरकारी बैंकों को RBI के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन फ्रेमवर्क के तहत रखा गया है। RBI और वित्त मंत्रालय ने इस संबंध में द इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया है।

