देश में बैंकों की खस्ता हालत और बड़े कर्जों की बकाया देनदारी से निपटने के लिए सरकार एक स्वतंत्र पैनल बनाने पर विचार कर रही है। इसके जरिए बैंकों को बड़े कर्ज वसूलने में मदद दी जाएगी। फिलहाल सरकार पैनल बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। प्रपोजल के मुताबिक, पैनल कर्ज वसूल ना पाने वाले बैंकों के साथ मिलकर काम करेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैंकों की बैलेंस शीट सुधारने को अपनी प्राथमिकता में रखा है। नाम का खुलासा न करने की शर्त पर पीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “जब बैंकों की आलोचना होती है तो वो जवाब नहीं दे पाते।” वहीं, आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने भी बैंकों को उनकी बैलेंस शीट साफ—सुथरी करने के लिए मार्च 2017 का समय दिया है। सरकार ने कहा था कि वो मार्च 2019 तक सरकारी बैंकों को 11 बिलियन डॉलर की मदद देगी ताकि वो अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त कर सकें। बता दें कि भारत 121 बिलियन डॉलर के कर्ज पर बैठा है जिसमें से 100 बिलियन तो बैंकों के जरिए दिया गया है। अब ये रकम मीडिया, जांच एजेंसियों और राजनेताओं की नजर में है। कुछ ने इस स्थिति के लिए बैंकों को जिम्मेदार ठहराया है जो बड़े बिजनेसमैन को देखकर नियम ताक पर रख देते हैं।
कैसा होगा पैनल
2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद ये आइडिया पहली बार सामने आया था, लेकिन तब इसे गंभीरता से नहीं लिया गया था। मार्च में बैंकों ने इसे एक तरह के बीमे के तौर पर देखा, जिसके बाद अब इस पर गंभीरता से विचार हो रहा है। प्रस्ताव के तहत बड़े बैंकर, सरकारी व केंद्रीय बैंक के अधिकारियों को मिलाकर एक पैनल बनाया जाएगा, जो बड़े कर्जों की जांच करेगा और उनका निपटारा करने की कोशिश करेगा। इसमें जजों को शामिल करने की सलाह भी दी गई है।
मुश्किलें भी कम नहीं
पीएम के एक अधिकारी के मुताबिक, इस प्रस्ताव को मुसीबतें झेलनी होंगी। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या यह पैनल भारत के वर्तमान कानूनी ढांचे में फिट हो सकेगा? इस प्रस्ताव के बारे में पूछने पर वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।