अर्थव्यवस्था के मामले में भले ही स्विट्जरलैंड तमाम बड़े देशों के मुकाबले बहुत पीछे है, लेकिन न्यूनतम मेहनताने के मामले में वह टॉप पर पहुंचने वाला है। स्विट्जरलैंड के जेनेवा में न्यूनतम वेतन 23 स्विस फ्रैंक प्रति घंटा (1,839 रुपये के करीब) किए जाने की तैयारी पूरी हो गई है। यदि ऐसा होता है तो जेनेवा में काम करने वाले लोगों को दुनिया भर से ज्यादा न्यूनतम वेतन हासिल होगा। स्विस सरकार के मुताबिक इसे फैसले को लेकर वोटिंग कराई गई थी और 58 फीसदी वोटर्स ने इसका समर्थन किया है। मजदूर संगठनों की ओर से लंबे समय़ से ऐसी मांग की जा रही थी। सरकार का कहना है कि इससे गरीबी को दूर करने में मदद मिलेगी।

इसके अलावा सामाजिक समन्वय भी बेहतर होगा और मानव जीवन की गरिमा भी बढ़ सकेगी। 1 नवंबर के हिसाब से यह प्रति घंटे न्यूनतम मेहनताना 6 फीसदी वर्करों को फायदा पहुंचाएगा। स्विट्जरलैंड के सप्ताह में औसतन 41 वर्किंग हावर्स के हिसाब से वर्कर्स को अब महीने के न्यूनतम 3,772 फ्रैंक यानी 3,01,382 रुपए मिलेंगे। उसकी न्यूनतम वार्षिक सैलरी 45,264 फ्रैंक यानी 36,16,593 रुपए होगी। इकोनॉमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट के लिविंग सर्वे के अनुसार जेनेवा विश्व का दसवां सबसे महंगा शहर है। इकोनॉमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट के अनुसार इस साल जेनेवा में एक किलोग्राम ब्रेड की कीमत लगभग 199 रूपए है।

एक और जेनेवा में घंटे का न्यूनतम मेहनताना लगभग 25 डॉलर है वहीं दक्षिण अफ्रीका में विभिन्न कामगारों का घंटे का न्यूनतम मेहनताना 1.23 डॉलर है। इस लिहाज से देखें तो दुनिया भर में मजदूरों के न्यूनतम वेतन में बड़ा अंतर देखने को मिलता है। वहीं अमेरिका में न्यूनतम मेहनताना 7.25 डॉलर प्रति घंटे है।

ब्रिटेन में न्यूनतम मेहनताना 11.33 डॉलर प्रति घंटे तो आस्ट्रेलिया में न्यूनतम मेहनताना 19.84 डॉलर प्रति घंटे है। भारत की बात करें तो यहां मनरेगा मजदूरों को एक दिन का 202 रुपये मेहनताना मिलता है। यदि इसे 8 घंटे के काम के अनुसार विभाजित करके देखें तो यह महज 25.25 रुपये प्रति घंटा ही होता है, जो वैश्विक मानक की तुलना में बेहद कम है।