कोरोना काल में शहरी क्षेत्रों में बढ़े बेरोजगारी के संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार गांवों की तर्ज पर ही मनरेगा जैसी स्कीम लागू कर सकती है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस योजना पर सरकार 35,000 करोड़ रुपये खर्च कर सकती है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शहरी एवं आवासीय विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव संजय कुमार ने बताया कि इस स्कीम को छोटे शहरों के लिए लॉन्च किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस पर बीते साल से ही विचार चल रहा है, लेकिन कोरोना के चलते अब इस प्लान पर और तेजी से काम शुरू हुआ है। बता दें कि मोदी सरकार इस साल ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम मनरेगा पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है। इसके तहत ग्रामीण मजदूर साल में 100 दिन न्यूनतम दैनिक मजदूरी 202 रुपये पर काम कर सकते हैं।

मनरेगा के तहत स्थानीय सार्वजनिक परियोजनाओं जैसे सड़क निर्माण, तालाब निर्माण और वनीकरण के तहत रोजगार देना शामिल है। अब तक इस योजना से 27 करोड़ से अधिक लोग जुड़ चुके है। लॉकडाउन के चलते शहरों से लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने में यह सफल योजना साबित हुई है। इसका परिणाम हाल ही में सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमईआई) की ओर से जारी सर्वे के अनुसार ग्रामीण बेरोजगारी में कमी के तौर पर देखा जा सकता है।

लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के विश्लेषण के मुताबिक कोरोना के चलते शहरी भारत में भी बड़ा संकट खड़ा हुआ है और बड़ी आबादी फिर से गरीबी में फंस गई है। ऐसे लोगों को संकट से निकालने में सरकार की यह स्कीम अहम साबित हो सकती है। आर्थिक जानकारों का कहना है कि इससे देश में मांग में इजाफा होगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। जानकारों के मुताबिक फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था में सप्लाई का संकट नहीं बल्कि डिमांड की कमी है। ऐसे में गरीबों तक पैसा पहुंचने से डिमांड में तेजी आएगी और फिर अर्थव्यवस्था का पहिया अपनी गति से स्वाभाविक तौर पर घूम सकेगा।