उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने लॉकडाउन की अवधि के दौरान 12 लाख नए मजदूरों को मनरेगा योजना के तहत काम दिया है। गुरुवार तक के आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार ने देश भर से पलायन कर वापस लौटे 26 लाख मजदूरों में से करीब आधे लोगों को आजीविका के साधन के तौर पर मनरेगा में काम दिया है। सूबे के ग्रामीण विकास विभाग के डेटा के मुताबिक प्रदेश में 39 लाख लोगों को मनरेगा के तहत जॉब कार्ड प्रदान किए गए हैं। इनमें से 12 लाख लोग ऐसे हैं, जिन्हें इस लॉकडाउन की अवधि में ही स्कीम के तहत रोजगार का अवसर प्रदान किया गया है।

यूपी सरकार के मुताबिक 12,38,979 लोगों को मरनेगा के तहत जॉब कार्ड्स दिए गए हैं। इससे सूबे के 8 लाख परिवारों को मदद मिली है।कोरोना के संक्रमण से निपटने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा स्कीम बेहद अहम साबित हुई है और गरीब तबके के लोगों को आजीविका का सहारा मिला है।

खासतौर पर ऐसे मजदूर परिवारों को मदद मिली है, जिन्हें कोरोना के संकट के चलते दिल्ली, मुंबई समेत देश के कई बड़े शहरों से वापस अपने गांवों की ओर पलायन करना पड़ा है। खासतौर पर गेंहू की कटाई पूरी होने के बाद से मजदूरों को रोजगार के संकट का ज्यादा ही सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में योगी सरकार ने मजदूरों को मदद करने के लिए मनरेगा स्कीम को ही आगे बढ़ाने का फैसला लिया है।

इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से 26 मार्च को जारी किए गए 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के तहत मनरेगा की मजदूरी को भी बढ़ाने का ऐलान किया गया था। अब मनरेगा के मजदूरों को 202 रुपये प्रतिदिन दिहाड़ी मिल रही है, जबकि इससे पहले यह दर 182 रुपये प्रतिदिन ही थी। इस स्कीम के तहत दिहाड़ी मजदूरों को ग्रामीण इलाकों में हर साल 100 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जाती है। हालांकि ग्रामीण विकास के मामलों के जानकारों का कहना है कि इस स्कीम के तहत साल में कम से कम 200 दिनों के रोजगार की गारंटी दी जानी चाहिए।