दिल्ली सरकार द्वारा 12 लाख निर्माण मजदूरों के कल्याण फंड के 1150 करोड़ रुपए गैरकानूनी ढंग से अन्य मदों में खर्च करने के फैसले के खिलाफ केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने गुरुवार को जांच के आदेश जारी कर दिए। उन्होंने इस बाबत दिल्ली सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। निर्माण मजदूरों के संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता और भाजपा विधायक ओम प्रकाश शर्मा व जगदीश प्रधान गुरुवार को केंद्रीय श्रम मंत्री से मिले थे। उन्होंने निर्माण मजदूरों के साथ की जा रही दिल्ली सरकार की ‘नाइंसाफी’ की विस्तृत जानकारी उन्हें दी और बताया कि दिल्ली सरकार ने मजदूरों को गुमराह करके निर्माण मजदूर कल्याण फंड में जमा लगभग 2000 करोड़ रुपए में से 1,150 करोड़ रुपए अस्पतालों, स्कूलों, अस्थायी आवासों इत्यादि के निर्माण के लिए खर्च करने का गैरकानूनी फैसला किया है। इससे दिल्ली में कार्यरत 12 लाख मजदूरों के हित प्रभावित होंगे और वे विकास की मुख्यधारा से कट जाएंगे।

गुप्ता ने श्रम मंत्री को यह भी जानकारी दी कि जब दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री गोपाल राय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कहने पर निर्माण मजदूरों के कल्याण फंड का पैसा अन्य मदों में खर्च करने का फैसला किया तब श्रमिक बोर्ड की बैठक ने इस पर अपनी मोहर लगाई और यह तय किया कि किस मद में कितना पैसा खर्च किया जाएगा। दिल्ली के श्रम मंत्री और श्रमिक बोर्ड के फैसलों को तत्कालीन श्रम सचिव केआर मीणा ने गैरकानूनी बताया। उन्होंने इस बाबत एक विस्तृत व्याख्या श्रम मंत्री और श्रमिक कल्याण बोर्ड को भेजी। इस पर सरकार ने केआर मीणा का स्थानांतरण दंडात्मक नियुक्ति की तरह करके उन्हें प्रभावहीन कार्य सौंप दिया।

श्रम मंत्री ने शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करके दिल्ली सरकार के निर्माण मजदूर विरोधी फैसले के खिलाफ जांच के आदेश जारी कर दिए। उन्होंने दिल्ली सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए उपरोक्त फैसले के बाबत विस्तार से रिपोर्ट भेजने को कहा है। गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय आम आदमी पार्टी के राजनीतिक लाभ के लिए बड़ी चालाकी से यह तथ्य छिपा गए कि उपरोक्त कार्यों के लिए आवश्यक राशि श्रमिकों से 2002 से उपकर (सेस) के रूप में जमा कराई गई राशि से खर्च की जाएगी।

दो जून 2016 को श्रमिक बोर्ड की 29वीं बैठक में निर्माण श्रमिकों के 1150 करोड़ रुपए उक्त निर्माण कार्यों में लगाने का फैसला किया गया था। यह फैसला श्रम मंत्री ने केंद्र सरकार के आदेशों, संबंधित अधिनियम की धाराओं और विभिन्न अदालतों के आदेशों का उल्लंघन करते हुए लिए गए। बोर्ड की बैठक में श्रमिकों के प्रतिनिधि संगठनों ने इसका विरोध किया था। इसे दिल्ली सरकार ने खारिज कर दिया था। सरकार का यह फैसला असंवैधानिक और गैरकानूनी है।

श्रम मंत्री ने अपने पत्र में श्रमिकों के लिए स्कूल खोलने की बात कही है, जिसके लिए बोर्ड मीटिंग में निर्माण श्रमिक उपकर फंड से 100 करोड़ रुपए आबंटित करने का फैसला किया गया था। भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996 के अनुच्छेद 22 (ई) में श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान है। इसके अनुसार इस फंड से स्कूलों का निर्माण तथा रख-रखाव या विद्यालय संबंधी आधारभूत कार्य नहीं किए जा सकते हैं। इसी तरह श्रमिक उपकर फंड से आम जनता के लिए अस्पताल, अस्थायी आवास, छात्रावास और गुणवत्ता विकास केंद्रों की स्थापना भी नहीं की जा सकती। अगर दिल्ली सरकार इन कार्यों को करना चाहती है तो उसे इसके लिए दिल्ली सरकार के बजट में व्यवस्था करनी चाहिए थी।