केंद्र को सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने के प्लान का बड़ा झटका लगा है। निवेशक इन कंपनियों अर्थात पीएसयू में हिस्सेदारी खरीदने के लिए अधिक रुचि नहीं दिखा रहे। दरअसल निजी क्षेत्र की कंपनियों के मुकाबले सरकारी कंपनियों के शेयरों में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है। अप्रैल 2020 से बाजारों से बड़े पैमाने पर वसूली के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के प्रदर्शन में महत्वपूर्ण गिरावट आई है।
रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च से 24 नवंबर के बीच बीएसई सेंसेक्स में जहां 50 फीसदी की तेजी देखने को मिली वहीं बीएसई पीएसयू एंडेक्स में महज में 18.7 फीसदी की तेजी आई। इस समय तक बीएसई के मिडकैप और स्मॉल कैप इंडेक्स में 60 और 75.6 फीसदी तक उछाल आया है। सूत्रों ने बताया कि सरकार अब कंपनियों की बुक वैल्यू और प्रॉफिटेबिलिटी के अनुरूप वैल्यूएशन में सुधार के तरीके देख रही है।
सरकार के स्वामित्व वाले बैंक जिन्हें बाजार मूल्य के संदर्भ में लाभ की उम्मीद थी, उसमें भी लगातार गिरावट देखी गई है। उदाहरण के लिए निफ्टी पीएसयू बैंक इंडेक्स 2017 में अपने 4327 के पीक से 64 फीसदी नीचे है। हालांकि कई निजी बैंकों ने भी मार्च 2020 में कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप के बाद अपने शेयर मूल्य में भारी गिरावट देखी है।
हाल के दिनों में एचडीएफसी बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक ने इस तरह के नए रिकॉर्ड बनाए हैं। हालांकि इस बीच कुछ अन्य निजों बैंकों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। हालांकि पीएसयू के कमजोर प्रदर्शन पर बाजार विशेषज्ञों की राय है कि प्रदर्शन में यह अंतर राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की कम रुचि भी एक कारण है।
जानिए क्या है पीएसयू
भारत सरकार द्वारा नियंत्रित और संचालित उद्यमों और उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या पीएसयू कहा जाता है। केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के आधिपत्य वाले सार्वजनिक उपक्रम में सरकारी पूंजी की हिस्सेदारी 51 फीसदी या इससे अधिक होती है।