उद्योगपति गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी, व्यवसायी पंकज ओसवाल और रियल एस्टेट कारोबारी सुरेंद्र हीरानंदानी समेत 66 लोगों के पास साइप्रस गोल्डन पासपोर्ट है। फ्लोटिंग ऑफशोर कंपनियों के लिए एक डेस्टिनेशन साइप्रस आइलैंड धनी भारतीयों और एनआरआई की भी पसंदीदा जगह है। ये एक आरामदायक जीवन के लिए या अपने देशों में आपराधिक आरोपों और मनी-लॉन्ड्रिंग मामलों से सुरक्षित बचने के लिए लोग इसकी नागरिकता चाहते हैं।
2007 में शुरू की गई ‘गोल्डन पासपोर्ट” योजना’ को ‘साइप्रस निवेश कार्यक्रम’ भी कहा जाता था। इसने आर्थिक रूप से प्रतिष्ठित व्यक्तियों को साइप्रस की नागरिकता प्रदान करने की सुविधा प्रदान की, जिससे देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया। साइप्रस सरकार द्वारा 2022 के ऑडिट से पता चला कि कुल 7,327 व्यक्तियों को साइप्रस पासपोर्ट के लिए मंजूरी दी गई थी, जिनमें से 3,517 निवेशक” थे और बाकी उनके परिवारों के सदस्य थे। यह योजना कई बदलावों से गुज़री। हालांकि 2020 में खत्म कर दिया क्योंकि आपराधिक आरोपों, संदिग्ध चरित्र और पीईपी (Politically Exposed Persons) वाले लोग इसका अधिक इस्तेमाल कर रहे थे।
साइप्रस गोपनीय परियोजना में भागीदार ओसीसीपीआर (Organized Crime And Corruption Reporting Project) ने ‘गोल्डन पासपोर्ट’ प्राप्त करने वाले हजारों प्रमुख व्यक्तियों के साथ-साथ साइप्रस सरकार द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के पूरे डेटा को हटा दिया है। इनसे पता चलता है कि 2020 के बाद 83 मामलों में पासपोर्ट रद्द करने की सिफारिश की गई। आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 और 2020 के बीच 66 भारतीय साइप्रस पासपोर्ट प्राप्त करने में कामयाब रहे। इस पूरी प्रक्रिया में औसतन तीन महीने से एक साल तक का समय लगा।
साइप्रस की नागरिकता पाने वाले शुरुआती आवेदकों में गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद शांतिलाल अडानी भी शामिल थे, जिनकी ऑफशोर होल्डिंग्स का विवरण जनवरी 2023 की हिंडनबर्ग रिपोर्ट में दिया गया है। विनोद अडानी (जिन्हें सबसे अमीर एनआरआई में से एक बताया जाता है) 1990 के दशक की शुरुआत से दुबई में हैं लेकिन उनके पास साइप्रस का पासपोर्ट है। ओसीसीआरपी डेटा उन्हें रिकॉर्ड में एक ‘निवेशक के रूप में लिस्ट करता है, जिन्होंने 3 अगस्त 2016 को ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना के लिए आवेदन किया था। बमुश्किल तीन महीने में 25 नवंबर 2016 को उनके आवेदन को मंजूरी दे दी गई और साइप्रस की नागरिकता प्रदान की गई।
विनोद अडानी का नाम पहले इंडियन एक्सप्रेस-आईसीआईजे की ऑफशोर इन्वेस्टीगेशन में सामने आया था। सबसे पहले 1994 में बहामास में जीए इंटरनेशनल इंक नामक कंपनी की स्थापना के लिए 2016 के पनामा पेपर्स में भी विनोद अडानी का नाम सामने आ चुका है। 2021 के पेंडोरा पेपर्स में विनोद अडानी का नाम ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स कंपनी हिबिस्कस आरई होल्डिंग्स लिमिटेड को शामिल करने के लिए आया था।
साइप्रस की नागरिकता हासिल करने वाले एक अन्य प्रमुख भारतीय उद्योगपति पंकज ओसवाल और उनकी पत्नी राधिका ओसवाल हैं। ये बर्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड के संस्थापक हैं। ओसवाल परिवार हाल ही में दुनिया के सबसे महंगे घरों में से एक स्विट्जरलैंड में 200 मिलियन डॉलर में खरीदने के लिए सुर्खियों में आया थ। एक बार जब पंकज ओसवाल ने अपनी साइप्रस नागरिकता प्राप्त कर ली, तो उन्होंने साइप्रोल लिमिटेड को बंद कर दिया।
13 अक्टूबर 2020 को साइप्रस के मंत्रिपरिषद ने पुरानी कमजोरियों और इसके प्रावधानों के अपमानजनक शोषण का हवाला देते हुए ‘गोल्डन पासपोर्ट’ योजना को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का निर्णय लिया। ओसीसीआरपी और अन्य मीडिया द्वारा साइप्रस गोपनीय जांच के लिए भेजे गए सवालों के जवाब में साइप्रस के आंतरिक मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने 233 व्यक्तियों की नागरिकता से वंचित करने का निर्णय लिया है और उनमें से 68 व्यक्ति निवेशक हैं और 165 परिवार के सदस्य हैं।
साइप्रस पासपोर्ट के प्रस्तावित निरस्तीकरण की सूची में केवल एक भारतीय है। अनुभव अग्रवाल का पासपोर्ट निरस्त होगा। इनका ‘गोल्डन पासपोर्ट’ 2 नवंबर, 2016 को चार महीने के भीतर स्वीकृत किया गया था। निकोलाटोस आयोग की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुभव अग्रवाल को नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL) घोटाला में फंसाया गया था और वह नागरिकता के लिए अपने आवेदन में संदिग्ध कंपनियों के साथ अपने संबंधों को बताने में विफल रहे।
अनुभव अग्रवाल NSEL घोटाले में एक प्रमुख आरोपी हैं, जिसमें निवेशकों से 3,600 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की गई थी। अगस्त 2020 में उन्हें अबू धाबी में गिरफ्तार किया गया और जून 2020 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया।
अग्रवाल उन भारतीयों की सूची में अकेले नहीं हैं जिन्होंने साइप्रस की नागरिकता हासिल कर ली है और भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संबंध बनाए हुए हैं, लेकिन अब बंद हो चुकी निवेश योजना के तहत साइप्रस पासपोर्ट प्राप्त करने में कामयाब रहे हैं।
नेसामणिमारन मुथु (जिन्हें एमजीएम मारन के नाम से जाना जाता है) तमिलनाडु के एक व्यवसायी और तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक लिमिटेड के पूर्व अध्यक्ष हैं, जिन्होंने 2016 में साइप्रस की नागरिकता हासिल कर ली थी। उनके आवेदन को केवल दो महीनों में मंजूरी दे दी गई थी। 2017 में उनके दोनों बच्चों को भी नागरिकता मिल गई थी।
एमजीएम मारन और उनकी कंपनी एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड भारत में ईडी के निशाने पर हैं। दिसंबर 2022 में उनकी 293 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई है क्योंकि मारन ने भारतीय रिजर्व बैंक की मंजूरी के बिना सिंगापुर में दो कंपनियों में एक समान विदेशी निवेश किया था।
ईडी ने एक आधिकारिक बयान में एमजीएम मारन की साइप्रस नागरिकता का भी जिक्र किया था। ईडी ने दावा किया, “भारतीय कानूनों की पहुंच से बचने के लिए एमजीएम मारन ने अपनी भारतीय नागरिकता आत्मसमर्पण कर दी। यह भी पाया गया कि एमजीएम मारन ने दक्षिणी एग्रीफ्यूरेन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की आड़ में अपनी संपत्ति को भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की पहुंच से दूर रखने के लिए भारत से विदेशों में ट्रांसफर करना भी शुरू कर दिया।”
गोल्डन पासपोर्ट हासिल करने वाले लोगों में उत्तर प्रदेश के एक व्यवसायी वीरकरन अवस्थी और उनकी पत्नी रितिका अवस्थी शामिल हैं। उन्होंने भी 2016 में नागरिकता हासिल कर ली थी (डेटा से पता चलता है कि रितिका को 20 दिनों में मंजूरी दे दी गई थी) और लंदन चले गए थे। लेकिन वर्षों बाद पहले उत्तर प्रदेश पुलिस, फिर दिल्ली पुलिस और उसके बाद ईडी ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। उन पर आरोप है कि बुश फूड्स ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक के रूप में दोनों ने गेहूं और धान खरीद के नाम पर किसानों को धोखा दिया था। उन्हें फरार घोषित कर दिया गया और अक्टूबर 2019 में उन्हें लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया। नवंबर 2020 में ईडी ने मामले में चार्जशीट दायर की, जिसमें 750 करोड़ रुपये की आर्थिक धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया और आखिरकार दिसंबर 2021 में यूके की अदालतों द्वारा उनके प्रत्यर्पण की अनुमति दी गई।