एशिया के भीतर सबसे खराब प्रदर्शन वाली मु्द्राओं में शुमार रहा रुपया अब महाद्वीप की सर्वोत्‍तम मुद्रा बन गया है। विशेषज्ञ इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल की बढ़ी संभावनाओं और भारत-पाकिस्‍तान के बीच हालिया तनाव को वजह मानते हैं। स्‍थानीय शेयरों में खूब पैसा लगा है जिसकी वजह से पिछले महीने में रुपया दुनिया में सबसे ज्‍यादा रिटर्न देने वाली मुद्रा बन गया। ब्‍लूमबर्ग से बातचीत में सिंगापुर के स्‍कॉटियाबैंक में मुद्रा रणनीतिकार गावो क्‍वी ने कहा, “अगर नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते हैं तो रुपये की बढ़त जारी रहने की संभावना है।” गावा के अनुसार, जून अंत तक एक अमेरिकी डॉलर 67 रुपये के बराबर आ सकता है। उन्‍होंने कहा कि वैश्विक विस्‍तार के रूप में विदेशी निवेशक तेजी से उभरते एशियाई बाजार में पैसा लगा सकते हैं।

18 मार्च तक विदेशियों ने भारत में 3.3 बिलियन डॉलर के शेयर खरीदे। इस महीने 1.4 बिलियन डॉलर के बॉन्‍ड भी खरीदे गए। भारी मात्रा में डॉलर के निवेश से रुपया अगस्‍त, 2018 के बाद के उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गया। रुपये से जुड़ी संपत्तियां खरीदने के लिए डॉलर उधार लेने में पिछले एक माह के भीतर 3.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ब्‍लूमबर्ग द्वारा कंपाइल डेटा के अनुसार, यह दुनिया का बेस्‍ट कैरी-ट्रेड रिटर्न है।

दो ओपिनियन पोल्‍स के अनुसार, सत्‍ताधारी एनडीए 11 अप्रैल से शुरू होने वाले चुनावों में बहुमत के लिए जरूरी 272 का आंकड़ा पार कर सकता है। आम चुनाव के परिणाम 23 मई को जारी होंगे। ब्‍लूमबर्ग से कोटेक सिक्‍योरिटीज के एनालिस्‍ट अनिंदय बनर्जी ने कहा, “बाजार मोदी की जीत पर खेल रहा है वर्ना अचानक ऐसे बदलाव की दूसरी कोई वजह नजर नहीं आ रही।”

बाजार में रुपये को लेकर आशावाद का आलम यह है कि एक महीने के ऑप्‍शन पर रुपये को बेचने का अधिकार अब बेचने वालों के मुकाबले 19 बेसिस प्‍वॉइंट ज्‍यादा है। 5 सितंबर के यही आंकड़ा 148 पर था जो कि नवंबर 2016 के बाद का उच्‍चतम था।

रुपये की त्रैमासिक अंतर्निहित अस्थिरता, जो कि कीमतों का संभावित उतार-चढ़ाव का अंतर होता है, उसमें शुक्रवार को 5.87 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। यह अगस्‍त के बाद का न्‍यूनतम आंकड़ा है।