देश के 10 बड़े बैंकों ने मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 19,000 करोड़ रुपये के कर्जों को राइट ऑफ कर दिया है। बीते साल की इसी तिमाही के मुकाबले यह राइट ऑफ करीब 10 फीसदी ज्यादा है। 2019 की जून तिमाही में बैंकों ने करीब 17,000 करोड़ रुपये के लोन को राइट ऑफ कर दिया था। इतने बड़े पैमाने पर लोन का राइट ऑफ का किए जाने से पता चलता है कि बैंकिंग सेक्टर में एनपीए का संकट कितना बढ़ गया है। देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने 4,630 करोड़ रुपये को लोन जून तिमाही में राइट ऑफ किए हैं। इसके अलावा बैंक ऑफ इंडिया ने 3,505 करोड़ रुपये के लोन बही-खाते से हटा दिए हैं।
कैनरा बैंक ने इस अवधि में 3,216 करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किए हैं। यही नहीं निजी सेक्टर के दिग्गज एक्सिस बैंक ने भी 2,284 करोड़ रुपये के लोन को राइट ऑफ कर दिया है। आईसीआईसीआई बैंक ने 1,426 करोड़ रुपये के लोन अपनी बुक्स से हटा दिए हैं। इंड्सइंड बैंक ने भी 1,250 करोड़ रुपये के कर्ज को राइट ऑफ कर दिया है।
फाइनेंशियल ईयर 2019 में देश के बैंकों ने कुल 2.13 लाख करोड़ रुपये के कर्जों को राइट ऑफ किया था। यह ट्रेंड 2020 में कम होने की बजाय़ बढ़ता ही गया और राइट ऑफ का आंकड़ा 2.29 लाख करोड़ रुपये के लेवल पर पहुंच गया। देश के 30 बैंकों ने एनपीए के आंकड़े को अपने बही-खाते से हटाने के मकसद से यह फैसला लिया था।
भले ही बैंकों ने इन लोन्स को राइट ऑफ किया है, लेकिन इसके बाद भी शाखाओं के स्तर पर कर्जों की वसूली के प्रयास किए जा रहे हैं। आरबीआई की वेबसाइट पर मौजूद डाटा के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में राइट ऑफ में 10 पर्सेंट का इजाफा हुआ है। बैंकिंग सेक्टर के जानकारों का कहना है कि बैंकों की वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं है कि वे एनपीए में और इजाफे को बर्दाश्त कर पाएं। बता दें कि कोरोना संकट के बीच एनपीए का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में बैंक अपनी बुक्स से कर्जों को राइट ऑफ कर रहे हैं तो ताकि बही-खाते को साफ सुथरा रख सकें।