भारत की जीडीपी ग्रोथ मौजूदा वित्त वर्ष में 3 से 9 फीसदी तक कम हो सकती है। जीडीपी में गिरावट का आंकड़ा इस बात पर निर्भर करेगा कि आखिर इससे आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए क्या उपाय अपनाए जाते हैं और वह कितने कारगर रहते हैं। मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। ‘इंडियाज टर्निंग पॉइंट’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि महामारी से लगने वाले आर्थिक झटके से बैंकों पर भी बेहद विपरीत असर पड़ेगा। इसके चलते बैड फाइनेंशियल ईयर 2021 में बैड लोन 7 से 14 फीसदी तक बढ़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के कदमों से गैर-निष्पादित परिसंपत्ति(NPA) पर महामारी के प्रभाव को कम किया जा सकता हैं।
मैकेंजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना संकट से पहले भी भारत की अर्थव्यवस्था चुनौतियों का सामना करना रही थी। वित्त वर्ष 2020 में जीडीपी की वृद्धि दर गिरकर 4.2% दर्ज़ की गई थी, जो पिछले 11 सालों में सबसे कम है। कोरोना संकट के चलते भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी बिगड़ गई है। मैकेंजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि विकास को बढ़ावा देने के लिए जरूरी कदमों के अभाव में भारत में पूरा एक दशक आय और क्वॉलिटी ऑफ लाइफ के मामले में स्थिरता वाला साबित हो सकता है।
यही नहीं रिपोर्ट में भारत की आर्थिक विकास दर को 8 से 8.5 पर्सेंट तक के लेवल पर लाने के लिए कुछ उपाय भी बताए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस ग्रोथ को 2030 तक बनाए रखने के लिए सामाजिक सुरक्षा के नियमों के साथ लचीले श्रम बाजार, पावर सेक्टर में सुधार और टैक्सेशन की व्यवस्था को और आसान बनाए जाने की जरूरत है।
रिपोर्ट में पूंजी की लागत को कम करने का सुझाव दिया गया है और कहा गया है कि घरेलू बचत के चार प्रतिशत को वित्तीय उत्पादों की ओर मोड़ा जा सकता है यदि बीमा, पेंशन फंड और पूंजी बाजार के क्षेत्रों में गंभीर सुधार किए जाएं। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि गरीब परिवारों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज का वित्तीय वर्ष 2020-21 के वित्तीय घाटे पर प्रभाव पड़ेगा।

