TDS on Fixed Deposit : भारत में, फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) निवेश के लिए सबसे लोकप्रिय विकल्पों में से एक है, जो किसी निवेशक की जमा पूंजी को बाजार के उतार-चढ़ाव से बिना प्रभावित हुए पहले से तय ब्याज के आधार पर बढ़ाने में मदद करता है. फिक्स्ड इनकम विकल्पों में खासतौर से भारत में 5 साल के टैक्स सेवर एफडी में निवेश ज्यादा पॉपुलर है. टैक्स सेवर एफडी (Tax Saver FD) में 1.50 रुपये तक की जमा पर आप इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी के तहत आप टैक्स लाभ ले सकते हैं. यानी आप अपनी टैक्सेबल इनकम से 1.5 लाख रुपये तक की कटौती के लिए क्लेम कर सकते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि यह स्कीम सिर्फ टैक्स बचाती ही नहीं है, बल्कि इसकी ब्याज आय टैक्सेबल भी है.
फिक्स्ड डिपॉजिट के जरिए हासिल होने वाले ब्याज पर टीडीएस (Tax on Fixed Deposit) लगता है, अगर वह इनकम टैक्स नियमों में दी गई लिमिट से अधिक हो. इसलिए एफडी से मिलने वाली ब्याज पर टीडीएस का नियम आपको भी समझना चाहिए, अगर आप इसमें निवेश करने का मन बना रहे हैं.
क्या होता है TDS
सोर्स पर टैक्स कटौती (TDS) की बात की जाए तो यह टैक्स की चोरी रोकने के लिए अप्लाई होता है. टीडीएस में किसी व्यक्ति या संगठन को वेतन, ब्याज, किराया, प्रोफेशनल फीस देते समय भुगतान के पूर्व निर्धारित टैक्स पर्सेंटेज में कटौती करने को बाध्य किया जाता है. कटौती की राशि सरकार को तुरंत भेज दी जाती है. टीडीएस से टैक्स कलेक्शन सिस्टम आसान होता है और संभावित टैक्स चोरी रुकती है.
हालांकि, टीडीएस तभी काटा जाता है जब वह टैक्सेबल कैटेगरी में आता है. यह ध्यान रखना चाहिए कि टैक्स-सेविंग एफडी से होने वाली ब्याज आय भी टीडीएस के अधीन है. ज्वॉइंट एफडी खाताधारकों के मामले में, ब्याज आय पर टीडीएस प्राथमिक खाताधारक के पैन के आधार पर काटा जाता है. इसका मतलब है कि सेकंडरी खाताधारक एफडी पर टीडीएस से संबंधित कटौती के लिए जिम्मेदार नहीं है.
बैंक एफडी पर टैक्स के क्या हैं नियम
फिक्स्ड डिपॉजिट से हासिल होने वाली ब्याज आय पूरी तरह से टैक्सेबल होती है. अगर सामान्य निवेशकों के लिए एफडी से होने वाली ब्याज आय एक साल में 40,000 रुपये से अधिक है, तो बैंक आपके खाते में ब्याज जमा करते समय टीडीएस काट लेते हैं. वहीं वरिष्ठ नागरिक के मामले में यह लिमिट 50,000 रुपये है. ध्यान रहे कि टीडीएस ब्याज जमा करते समय काटा जाता है, न कि एफडी मैच्योर होने पर. यानी 5 साल की एफडी है तो 5 बार टीडीएस कटौती होगी.
नॉन बैंक एफडी पर (कंपनी एफडी)
कुछ कंपनी एफडी के मामले में अगर ब्याज आय 5000 रुपये से ज्यादा है तो उस पर टीडीएस अप्लाई होता है. यानी एक साल में 5000 रुपये से ज्यादा ब्याज आय टैक्सेबल होता है.
कितना कटता है टैक्स
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 194A के अनुसार, एफडी के ब्याज पर TDS काटा जाता है. वित्त वर्ष में एफडी इंटरेस्ट इनकम 40,000 रु. (वरिष्ठ नागरिकों के लिए 50,000 रु.) से अधिक होने पर 10 फीसदी की दर से TDS काटा जाता है. लेकिन, अगर पैन की डिटेल नहीं दी गई है तो इंटरेस्ट इनकम से 20 फीसदी की दर से TDS काटा जाता है.
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क्या अलग से भी कटता है टैक्स
मान लिया एफडी से ब्याज आय सामान्य केस में 40,000 रुपये से ज्यादा है और बैंक ब्याज देते समय 10 फीसदी टीडीएस काट लेता है. लेकिन अगर इस ब्याज आय को आपके सालाना इनकम में जोड़ते समय आप 10 फीसदी से ज्यादा वाले टैक्स स्लैब में आते हैं तो वहां आपको टैक्स देना पड़ेगा. जैसे अगर आप 20 फीसदी टैक्स स्लैब में आते हैं तो आपको 10 फीसदी टीडीएस के अलावा 10 फीसदी और टैक्स देना होगा.
अगर इनकम टैक्सेबल नहीं है?
जिन डिपॉजिटर्स की इनकम टैक्सेबल नहीं है, वे फॉर्म 15G और फॉर्म 15H (60 और उससे अधिक की उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए) में एक डिक्लरेशन प्रदान कर सकते हैं. ऐसा करने से बैंक एफडी ब्याज पर टीडीएस की कटौती नहीं कर पाएंगे. टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय एफडी इंटरेस्ट इनकम को डिपॉजिटर की एनुअल इनकम में जोड़ा जाता है. ऐसे डिपॉजिटर जिन्होंने फॉर्म 15G या 15H दाखिल किया है, लेकिन उनकी आय टैक्सेबल है, उन्हें आईटीआर दाखिल करते समय अपने टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स का भुगतान करना होगा.
(Source: Groww, clear tax)