कहने को स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र को वस्तु व सेवा कर (जीएसटी ) के दायरे से बाहर रखा गया है लेकिन स्वास्थ्य से जुड़े तमाम तरह के रसायनों व उत्पादों पर जीएसटी लगने से लोगों की जेबों पर इसका बोझ पड़ना तय है। हालांकि फिलहाल स्थिति अभी असमंजस वाली है। अस्पतालों व तामाम जांच केंद्रों पर अभी तक (करीब दो हफ्ते बाद भी) स्थिति पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। तमाम तरह के बिल पर जीएसटी लग रहे हैं पर नए बिल किस आधार पर दिए जाए यह अभी अस्पताल या जांच केंद्र तय नहीं कर पा रहे हैं। किसी तरह से बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है। स्थिति सामान्य होने में अभी वक्त लगेगा।
देशवासियों को राहत नहीं, स्वास्थ्य पर्यटन बढ़ने की उम्मीद
देश की स्वास्थ्य सेवा का लाभ गरीबों को भले ही राहत भरी दर पर चाहे न मिले लेकिन देश का स्वास्थ्य पर्यटन बढ़ना तय है। इससे निजी अस्पतालों में मौजूदा व्यवस्था को लेकर उत्साह है। स्वास्थ्य सेवा को जीएसटी के बाहर रखने की बात कह कर वित्त मंत्री ने भले ही देशवासियों का ध्यान खींचा हो पर वास्तव में इसको लेकर जमीनी स्तर पर बहुत राहत भरी स्थिति नजर नहीं आ रही है। स्वास्थ्य जांच सेवाओं से जुड़े एक चिकित्सक का कहना है कि भले ही जांच प्रयोगशालाओं को सेवा कर के दायरे से बाहर रखा गया है। जिससे कुछ राहत है लेकिन जांच प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को वस्तुकर से राहत नहीं दी गई है। इससे देशवासियों को राहत नहीं मिलने वाली लेकिन बाहर के देशों सें स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही बहुत महंगी हैं, इसलिए बाहर से इलाज के लिए भारत आने वालों की संख्या जरूर बढ़ेगी।
जांच महंगी होने की आशंका
एक निजी जांच लैब चला रहे चिकित्सक डॉ. अभिषेक का कहना है कि जांच लैब में इस्तेमाल होने वाली एक्सरे फिल्म, खून के जांच के लिए जरूरी केमिकल, सिरिंज और तमाम जरूरी किट्स पर कर में राहत नहीं है बल्कि इन पर 12 फीसद क र की बजाय 18 फीसद जीएसटी लग रहा है। कु छ मामलों में तो अभी पता लग रहा है लेकिन अधिकांश मामालों में नई खरीद होने से पहले अभी तक मालूम भी नहीं है कि किस वस्तु या किस केमिकल पर कितना जीएसटी लगेगा। किसी भी तरह से बीच का रास्ता हो सकता है क्या रसायन मंत्रालय या दूसरे संबंधित विभागों से समझने की कोशिश हो रही है।
निजी नर्सिंग होम चला रहे चिकित्सक डॉ. अश्विनी ने कहा कि अस्पतालों में जो उपयोग की चीजें हैं मसलन दवाएं जांच किट वगैरह उनके दाम बढ़ गए हैं। इससे मरीजों को बढ़े हुए बिल दिए जा रहे हैं, उसक ो लेकर गतिरोध पैदा हो रहे हैं। जो पुराने मरीज हैं तमाम पुरानी बीमारियों के और लंबे समय से दवाएं ले रहे हैं वे नए बिल देख कर हैरान हैं। हम करें क्या दवाएं नई दरों पर और महंगी आ रही हैं। हम लोग मरीजों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस तरह से विमुद्रीकरण देश हित के लिए था, उसी तरह जीएसटी देश हित में है। इसलिए हमें इसको लेकर सहयोगात्मक रुख रखना चाहिए। इस पर मरीज बढ़े बिल चुका रहे हैं।
राहत तो है पर अससंजस हर कदम पर
डीएमए के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अश्विनी गोयल का कहना है कि कुल मिलकर तो सरकार का कदम राहत व स्वागत वाला है लेकिन कुछ मामले में मरीजों पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि अभी भी स्थिति बहुत साफ नहीं है। अस्पतालंों में बिलिंग सिस्टम वगैरह सब पुराने हैं, इसÑलिए भी दिक्कत आ रही है पता ही नहीं चल पा रहा है कि किस दर पर किस वस्तु का जीएसटी है। उन्होंने कहा कि तमाम स्थितियों का एक बार विस्तृत आकलन करने के बाद हम वित्त मंत्री से मिल कर अपना पक्ष रखेंगे। उसके पहले हमें लगता है कि स्वास्थ्य सेवा से सीधे जुड़े कर्मचारियों को जीएसटी की बाबत प्रशिक्षण दिया जाए।
हालात तब और साफ होंगे जब नई खरीद शुरू होगी
दिल्ली चिकित्सा परिषद के पूर्व पदाधिकारी डॉ. अनिल बंसल ने कहा है कि स्वास्थ्य सेवा को बाहर रखने से प्रत्यक्ष रूप से तो कोई असर नहीं पड़ेगा, राहत वाली बात लगती है लेकिन इससे जुड़े तमाम तरह के उपयोगी वस्तुओं पर जीएसटी लगने से परोक्ष असर पड़ना तय है। क्योंकि मलेरिया वगैरह के किट व उसके केमिकल वगैरह पर पहले 12 फीसद की बजाय अब और अधिक कर लगेगा। स्थिति तो तब और साफ होगी जब अस्पतालों से पुराना स्टॉक खत्म हो जाएगा।
रसायनों पर जीएसटी से मरीजों की जेब पर बढ़ेगा बोझ
कहने को स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र को वस्तु व सेवा कर (जीएसटी ) के दायरे से बाहर रखा गया है लेकिन स्वास्थ्य से जुड़े तमाम तरह के रसायनों व उत्पादों पर जीएसटी लगने से लोगों की जेबों पर इसका बोझ पड़ना तय है।
Written by प्रतिभा शुक्ल
नई दिल्ली

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First published on: 14-07-2017 at 00:31 IST