Income Tax, Budget 2019-20: वित्त मंत्रालय का कहना है कि नौकरीपेशा लोगों का स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाने की जरूरत नहीं है। नौकरीपेशा वर्ग आय के आधार पर पेशेवर लोगों से अधिक कर का भार वहन कर सकता है। मंत्रालय ने यह बात अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया में कही है।
अर्नेस्ट एंड यंग के एक विश्लेषण के आधार पर अखबार ने छापा था कि वेतनभोगी वर्ग को पेशेवर लोगों की तुलना में तीन गुना ज्यादा इनकम टैक्स भरना पड़ता है। लिहाजा नौकरीपेशा लोगों को मिलने वाले स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट बढ़नी चाहिए।
वित्त मंत्रालय की दलीलः नौकरीपेशा लोगों की करयोग्य आय की तुलना प्रोफेशनल्स की टैक्सेबल इनकम से नहीं की जा सकती है। प्रोफेशनल्स के मामले में कर योग्य आय की गणना पेशे से जुड़े सभी खर्चों की राशि घटाने के बाद होती है। इन खर्चों में ऑफिस का किराया, कर्मचारियों की सैलरी, बिजली बिल, स्टेशनरी और अन्य खर्चे शामिल होते हैं।
नौकरीपेशा लोगों को इस तरह का कोई खर्च नहीं करना पड़ता है। उनके इस तरह के खर्च को कंपनी वहन करती है। उन्हें बस ऑफिस आने-जाने में खर्च करना पड़ता है। इसके लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाए जाने की जरूरत नहीं है।
वेतनभोगी करदाता के लिए यह पहले ही 50 हजार रुपये निर्धारित है। नौकरीपेशा और प्रोफेशनल की टैक्स देनदारी की जिस तरह से तुलना की गई है वह सेब और संतरे की तुलना करने के समान है। लेख में जो निष्कर्ष निकाला गया है वह आयकर के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।
मंत्रालय ने कहा कि खबर के आधार पर वेतनभोगी की नेट डिस्पोजेबल इनकम 21,09,129 रुपये है जबकि कंसल्टेंट की 11,06,600 रुपये है। ऐसे में कराधान का सिद्धांत कहता है कि जो ज्यादा भुगतान कर सकता है उस पर टैक्स अधिक लगाना चाहिए। इस मामले में साफ है कि वेतनभोगी की कर भुगतान करने की क्षमता कंसल्टेंट की तुलना में दो गुनी है। इस तरह से यह इन दोनों के टैक्स देने की क्षमता में अंतर को भी दिखाता है।
खबर में इस तरह की गई थी तुलनाः खबर में कंसल्टेंट और नौकरीपेशा वर्ग की सालाना 30 लाख रुपये की इनकम के आधार पर टैक्स कैलकुलेशन के जरिये दर्शाया गया था कि किस तरह से नौकरीपेशा वर्ग कंसल्टेंट की तुलना में तीन गुना अधिक टैक्स दे रहा है। लेख में बताया गया है कि 30 लाख के सकल वेतन वाला नौकरी पेशा व्यक्ति स्टैंडर्ड डिडक्शन व सेक्शन 80 सी, डी के तहत छूट के बाद 6.73 लाख रुपये टैक्स देता है जबकि इतनी ही आय वाला कंसल्टेंट आयकर के तहत उन्हें मिलने वाली तमाम छूट के बाद 2.18 लाख रुपये टैक्स देता है।