भारत के स्वाधीनता संग्राम (Indian Independence Movement) का इतिहास एक से बढ़कर एक बलिदान की कहानियों से तैयार हुआ है। इस इतिहास में कभी नील तो कभी नमक आजादी का प्रेरक प्रतीक बना। आजादी की इस लंबी लड़ाई में दूध ने भी अपना योगदान दिया है। यह कहानी है अमूल (AMUL) की और इसके सूत्रधार बने अमेरिका में न्यूक्लियर फिजिक्स की पढ़ाई कर वैज्ञानिक (Nuclear Scientist) बनने की चाह रखने वाले डॉ वर्गीज कुरियन (Dr Verghese Kurien)।

हर साल इतने मिलियन टन दूध का होता है उत्पादन

डॉ वर्गीज कुरियन को भारत की दुग्ध क्रांति (Milk Revolution) यानी श्वेत क्रांति (White Revolution) का जनक कहा जाता है। यह डॉ कुरियन के प्रयासों का ही नतीजा था कि भारत ने आज से 75 साल पहले ही दूध और डेयरी के क्षेत्र में अंग्रेजी वर्चस्व को चुनौती दे दी थी। आज की बात करें तो भारत में न सिर्फ दूध की सबसे अधिक खपत होती है, बल्कि भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक भी है। पशुपालन मंत्रालय के आंकड़ों के हिसाब से भारत में अभी सालाना करीब 190 मिलियन टन दूध का उत्पादन होता है। देश में अभी हर व्यक्ति के लिए करीब 400 ग्राम दूध की उपलब्धता है। इतना ही नहीं बल्कि दूध भारत का सबसे बड़ा कृषि उत्पाद भी है।

अंग्रेजों के विरोध से शुरू हुई श्वेत क्रांति

अमूल की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इस कहानी की शुरुआत गुजरात के कैरा जिले के दूध उत्पादक किसानों के विरोध से हुई। यह 1946 की बात है, जब कैरा जिले (Kaira District) में दूध के कारोबार पर ब्रिटिश कंपनी पोलसन डेयरी (Polson Dairy) का वर्चस्व था। जिले के किसान पोलसन डेयरी की मनमानियों से दुखी थे। किसानों ने अपनी परेशानियों की जानकारी सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) को दी।

बनना था न्यूक्लियर साइंटिस्ट, बन गए श्वेत क्रांति के जनक

सरदार पटेल की सलाह पर 14 दिसंबर 1946 को त्रिभुवन काका की अगुवाई में कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (KDCMPUL) की शुरुआत हुई। इस समय KDCMPUL छोटे स्तर पर काम कर रहा था। डॉ वर्गीज कुरियन की इसी समय एंट्री हुई। भारत सरकार से मिली स्कॉलरशिप के तहत उन्हें छह महीने आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करना था। डॉ कुरियन अमेरिका में पढ़कर न्यूक्लियर फिजिक्स और मेटालर्जी के वैज्ञानिक बनना चाहते थे। हालांकि दूध के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने की लड़ाई का हिस्सा बनने के बाद उनका जीवन बदल गया। वह अंतिम समय तक यहीं काम करते रहे और उनके मार्गदर्शन में देश दूध के उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भर बना, बल्कि अन्य देशों को प्रेरित करने वाली श्वेत क्रांति का सूत्रधार बना।

इसे भी पढ़ें: टाटा और अंबानी से पहले इस युवा ने दी जेफ बेजोस को कड़ी टक्कर, पहले अमेजन में ही करते थे नौकरी

दो गांव से शुरू होकर 222 जिलों तक पहुंचा अमूल

डॉ वर्गीज के 1950 में इस अभियान से जुड़ने से पहले KDCMPUL के साथ महज दो गांव की डेयरी सोसायटी जुड़ी हुई थी और इसकी क्षमता महज 247 लीटर की थी। डॉ वर्गीज ने इस अभियान का दायरा बड़ा किया। लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की नेशनल डेयरी पॉलिसी (National Dairy Policy) ने इस पूरे अभियान को और बड़ा बना दिया। आज अमूल ब्रांड का टर्नओवर 52 हजार करोड़ रुपये से अधिक है। अमूल ब्रांड के तहत काम करने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड आज देश के 28 राज्यों के 222 जिलों में मौजूद है। अमूल ब्रांड के साथ देश भर के 1.66 करोड़ दूध उत्पादक किसान जुड़े हुए हैं।