क्रिप्टोकरेंसी एक्स-चेंज (CRYPTOCURRENCY EX-CHANGES) अभी एक ऐसे माहौल में काम कर रहे हैं जहां कानून स्पष्ट नहीं हैं और नियम भी कड़ाई से लागू नहीं होते। साफ शब्दों में कहें तो सरकार और एजेंसियों के पास क्रिप्टो लेन-देन को पूरी तरह से कंट्रोल करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। क्रिप्टोकरेंसी ऐसी टेक्नोलॉजीज पर काम कर रही हैं जो इनके लिए बनी नीतियों से कहीं आगे हैं। और डर्टी मनी यानी काले धन को बॉर्डर पार ले जाने के लिए क्रिप्टो एक नया गेटवे और हब बन चुकी है। भारतीय एजेंसिया इस रफ्तार के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश कर रही हैं। ये खुलासे द कॉइन लॉन्ड्री (The Coin Laundry) इन्वेस्टिगेशन से सामने आए हैं, जिसे द इंडियन एक्सप्रेस ने इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के साथ मिलकर किया है।

10 महीने तक चली इस इन्वेस्टिगेशन में दुनियाभर के 38 न्यूज़रूम के 113 रिपोर्टर शामिल हुए। इनमें द न्यूयॉर्क टाइम्स (The New York Times), ज़्यूडडॉइचे साइटुंग (Suddeutsche Zei-tung), ले मोंड (Le Monde) और मलेशिया-किनी (Malaysia-kini) शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट ने उजागर किया है कि कैसे दुनिया भर में क्रिप्टो एक्सचेंजों ने एक शैडो अर्थव्यवस्था खड़ी कर दी है, जहां अवैध लेनदेन पहले से कहीं ज्यादा आसानी से किए जा रहे हैं। पिछले नौ सालों में इन एक्सचेंजों पर कम से कम 5.8 बिलियन डॉलर के जुर्माने, दंड और सेटलमेंट लगाए गए हैं। यह इस बात का संकेत है कि यह समानांतर फाइनेंशियल यूनिवर्स कितना बड़ा और अपारदर्शी हो चुका है। यानी ऐसी जगह जिस पर कभी टैक्स हेवन्स (tax havens) का दबदबा था।

The Indian Express ने भारत में क्रिप्टो के बढ़ते दबदबे की जांच की

सिर्फ 21 महीनों में यानी जनवरी 2024 से सितंबर 2025 के बीच गृह मंत्रालय के इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) ने कम से कम 27 क्रिप्टो एक्सचेंजों को चिन्हित किया, जिनका इस्तेमाल साइबर अपराधियों द्वारा कथित रूप से मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया गया। लगभग 2,872 पीड़ितों से ठगे गए अनुमानित 623.63 करोड़ रुपये इन प्लेटफ़ॉर्म्स के जरिए घुमाए गए। किसी एक एक्सचेंज से 360.16 करोड़ तक का लेनदेन हुआ, जबकि एक दूसरे में 6.01 करोड़ रुपये तक।

I4C ने पिछले तीन सालों में कम से कम 144 मामलों का विश्लेषण किया और एक ऐसे संदिग्ध और गैरकानूनी रूट का पता लगाया जिसे ट्रैक करना मुश्किल है। इसके जरिये साइबर अपराधों से चोरी किया गया पैसा क्रिप्टोकरेंसी के जरिए अंतरराष्ट्रीय सिंडिकेट तक पहुंचाया जाता है।

कैसे एक रूसी क्रिप्टो-आरोपी, ऑस्कर-विजेता केविन स्पेसी और बॉलीवुड स्टार दिशा पाटनी की फिल्म के पीछे मुख्य चेहरा था? कैसे कई ‘इन्वेस्टर समिट्स’ मुंबई में आयोजित भारतीयों की जन्मदिन पार्टी को निशाना बना रहे थे; और कैसे इसमें एलन मस्क की मां, मेय मस्क का नाम भी जुड़ा?

ये सभी खुलासे और द कॉइन लॉन्ड्री में उजागर किए गए मनी ट्रेल, ICIJ द्वारा पहले की जा चुकीं इन्वेस्टिगेशन- HSBC लीक्स, पनामा पेपर्स, पैराडाइज़ पेपर्स, पेंडोरा पेपर्स की कड़ी में एक और नाम है। उन प्रोजेक्ट्स की तरह, यह इन्वेस्टिगेशन भी दुनिया में काले धन के सर्किट को ट्रैक करती है जो अब डिजिटल एसेट्स के जरिये भेजा जा रहा है। और पहचान छिपाने का वादा करते हैं और इनके लिए बॉर्डर के कोई मायने नहीं होते।

क्रिप्टो क्या है और दुनियाभर में इसके खतरे

क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल टोकन है जिसे आप बिना बैंक के सीधे खरीद, बेच या ट्रांसफर कर सकते हैं। हर लेनदेन ब्लॉकचेन पर दर्ज होता है जो एक सार्वजनिक और सुरक्षित डिजिटल रिकॉर्ड है। लेकिन लेनदेन करने वाले लोग वॉलेट एड्रेस की वजह से गुमनाम रह सकते यानी अपनी पहचान छिपा सकते हैं। क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज वही जगह है जहां ऐसे टोकन खरीदे-बेचे जाते हैं। यह स्टॉक एक्सचेंज की तरह है लेकिन इसमें नियम कम, लेनदेन तेज और पहचान छिपी रहती है। यही वजह है कि निगरानी कम होने पर ये प्लेटफॉर्म असली निवेशकों के साथ-साथ धोखेबाज़ों और मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।

दुनिया भर में क्रिप्टो से जुड़े कानून बिखरे हुए और असमान हैं। जापान, सिंगापुर और यूरोपीय संघ जैसे देशों में सख्त लाइसेंसिंग और कड़े नियम हैं, जबकि कई जगहों में निगरानी बेहद ढीली है। इस वजह से पैसा आसानी से अलग-अलग कानूनी ढांचों के बीच से चला जाता है, ठीक वैसे ही जैसे पहले ICIJ की ऑफशोर फाइनेंस वाली जांचों में उजागर हुआ था।

रैनसमवेयर गैंग, ड्रग कार्टेल, साइबर फ्रॉड नेटवर्क और प्रतिबंधों से बचने वाले लोगों के लिए क्रिप्टो आज पहली पसंद बनता जा रहा है, क्योंकि यह फास्ट है और पहचान छिपी रहती है। कुछ ही मिनटों में पैसा वॉलेट्स, एक्सचेंजों और “मिक्सर्स” के बीच घूमकर ऐसे देशों में गायब हो सकता है जहां नियम सबसे कमज़ोर हैं। भारत की स्थिति भी अब दुनिया के इसी ग्लोबल ट्रेंड जैसी दिखने लगी है।

भारत में नियमों की कमी

रिटेल निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी के बावजूद सरकार क्रिप्टो को लेकर सतर्क रुख बनाए हुए है। अधिकारियों के अनुसार, एक दुविधा है: अगर सरकार क्रिप्टो को रेगुलेट करती है, तो इसे सपोर्ट करने के संकेत के रूप में देखा जा सकता है, जिससे और ज्यादा निवेशक आकर्षित होंगे, जबकि क्रिप्टो को अस्थिर और सिस्टम के लिए जोखिमभरा एसेट माना जाता है। फिलहाल, वित्त मंत्रालय ‘डिस्कशन पेपर’ पर काम कर रहा है, जो किसी ठोस नीति ढांचा नहीं बल्कि शुरुआती जो शुरुआती स्तर पर की जाने वाली पड़ताल की कोशिशभर है।

इस बीच, एजेंसियों के सामने एक अनोखी समस्या भी है: जब्त की गई क्रिप्टोकरेंसी को रखा कहां जाए? द इंडियन एक्सप्रेस को पता चला है कि एक प्रमुख जांच एजेंसी ने करीब 4 मिलियन डॉलर के जब्त डिजिटल एसेट्स को अस्थायी तौर पर एक कस्टडी और वॉलेट इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के पास सुरक्षित रखा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) सुरक्षित स्टोरेज के लिए गृह मंत्रालय से दिशानिर्देशों का इंतजार कर रहा है।

लाखों भारतीय अपनी बचत क्रिप्टो में लगा रहे हैं, उनके लिए नियमों की यह कमी एक गंभीर जोखिम पैदा करती है। क्योंकि कोई एक्सचेंज निकासी रोक दे या बंद हो जाए तो उनके पास मदद के लिए कोई जगह नहीं है- ना RBI का ओंबड्समैन, ना SEBI की निगरानी। रह जाएगी तो सिर्फ अनिश्चितता।

इंडस्ट्री पर बढ़ता बोझ

भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंजों का कहना है कि नियामक अनिश्चितता उनके ऑपरेशन में रुकावट डालती है, जबकि विदेशों में मौजूद प्लेफॉर्म- जो भारत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं वो भारतीय यूजर्स को बिना रोक-टोक सेवाएं देते रहते हैं।

कर व्यवस्था (tax regime) भी एक बड़ी समस्या है: हर ट्रांजैक्शन पर 1% TDS और 30% कैपिटल गेन टैक्स। उद्योग प्रतिनिधियों ने सरकार से कहा है कि इस सेक्टर को अब ‘चला पाना मुशकिल’ हो चुका है। अप्रैल 2022 से जुलाई 2023 के बीच भारतीय एक्सचेंजों पर ट्रेडिंग वॉल्यूम 97% गिर गया और लगभग 35,000 करोड़ रुपये के लेनदेन ऑफशोर प्लेटफ़ॉर्म्स की ओर शिफ्ट हो गए।

भारत के प्रमुख क्रिप्टो एक्सचेंजों- CoinDCX, WazirX, Mudrex, CoinSwitch, Pi42, Onramp और BitBNS की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि उनका ओनरशिप स्ट्रक्चर विदेशी होल्डिंग कंपनियों के तहत है। संस्थापकों का कहना है कि अनुकूल देशों से निवेश जुटाने के लिए फिनटेक सेक्टर में यह आम तरीका है। हालांकि, कुछ मानते हैं कि भारत में नियमों की अनिश्चितता ने उन्हें ऐसी जटिल (लेयर्ड) संरचना अपनाने के लिए मजबूर किया है।

वैश्विक स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण से जुड़े नियम (consumer-protec-tion rules) धीरे-धीरे बनाए जा रहे हैं। अमेरिका में भी नियम हमेशा एक जैसे नहीं रहे हैं। इसका हालिया उदाहरण है कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में बाइनेंस के संस्थापक चांगपेंग झाओ का माफीनामा स्वीकार कर लिया, जबकि उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध कबूल किए थे।