किसी भी कर्मचारी के लिए प्रोविडेंट फंड रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए बेहद अहम होता है। सामाजिक सुरक्षा के साथ ही शादी, बच्चों की पढ़ाई या संपत्ति की खरीद जैसे मामलों में यह फंड अहम साबित होता है। हालांकि पीएफ के योगदान, निकासी के नियम और एंप्लॉयर के हिस्से समेत कई तरह की बातों पर कर्मचारियों को अकसर भ्रम रहता है। इनमें से ही एक यह भ्रम है कि पीएफ में जमा होने वाला एंप्लॉयर का हिस्सा भी कर्मचारी की सैलरी के हिस्से से ही कटता है।

दरअसल यह भ्रांति गलत है। एंप्लॉयर आपके पीएफ में अपना योगदान सैलरी से अलग देता है। एंप्लॉयीज प्रोविडेंट फंड स्कीम के नियम के मुताबिक कोई भी नियोक्ता सैलरी के हिस्से से पीएफ का अपना योगदान नहीं काट सकता। आइए जानते हैं कि आखिर कैसे होता है प्रोविडेंट फंड में जमा राशि का कॉन्ट्रिब्यूशन और क्या है कैलकुलेशन…

एंप्लॉयीज प्रोविडेंट फंड के नियमों के मुताबिक कर्मचारी की बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसदी हिस्सा पीएफ में जमा किया जाता है।

इतना ही योगदान कर्मचारी के पीएफ अकाउंट में नियोक्ता को करना होता है।

नियोक्ता की ओर से जमा की जाने वाली 12 फीसदी की रकम में से 8.33 पर्सेंट हिस्सा एंप्लॉयीज पेंशन स्कीम में चला जाता है और 3.67 पर्सेंट ही पीएफ में जाता है। ईपीएस की यह रकम अधिकतम 15,000 रुपये की सैलरी पर ही काउंट की जाती है।

मान लीजिए कि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी 15,000 रुपये से अधिक है तो ईपीएस की हिस्सेदारी 15 हजार के आधार पर ही तय होती है। यह 1,250 रुपये प्रति माह होता है।

ऐसे में यह जरूरी है कि कर्मचारी अपने सैलरी ब्रेकअप को सही से पढ़ ले। किसी भी एंप्लॉयी की ग्रॉस सैलरी वह अमाउंट होता है, जो उसे डिडक्शन से पहले मिलता है। टेक होम या फिर नेट सैलरी वह हिस्सा है, जो उसे नकद हर महीने हासिल होता है।