साध्वी निरंजन ज्योति की विवादास्पद टिप्पणी को लेकर विपक्ष से गतिरोध खत्म करने की अपील करते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने शनिवार को कहा कि केंद्रीय मंत्री की माफी और प्रधानमंत्री के बयान के बाद अब इस अध्याय को बंद किया जाना चाहिए और सदन में सरकार के नीतिगत विषयों पर नियमानुसार चर्चा की जानी चाहिए।

सुमित्रा ने यहां राष्ट्रीय पुस्तक मेले का उद्घाटन करने के बाद पत्रकारों से कहा-विपक्ष के कहने पर मैंने सदन को दस मिनट के लिए स्थगित किया और केंद्रीय मंत्री से तुरंत माफी मंगवाई। विपक्ष के कहने पर इस मामले में प्रधानमंत्री का बयान भी दिलवा दिया गया। अब मैं चाहती हूं कि केंद्रीय मंत्री की टिप्पणी संबंधी अध्याय को बंद किया जाए और विपक्ष सरकार के नीतिगत विषयों पर सदन में नियमानुसार चर्चा करे। इस बात को पकड़ के बैठ जाना ठीक नहीं है। संसद की कार्यवाही आगे बढ़नी चाहिए। अगर विपक्ष को लगता है कि सरकार की किसी नीति में कोई गलती है, तो उसे सदन में इस मुद्दे को उठाना चाहिए।

सुमित्रा ने नेताओं के पुराने विवादास्पद बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि पहले भी गलत उदाहरण पेश किए गए हैं। लेकिन इस सिलसिले में माफी नहीं मांगी गई। मेरा इस बात को कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि इन गलत उदाहरणों की पुनरावृत्ति होनी चाहिए। लेकिन अब जब केंद्रीय मंत्री ने माफी मांग ली है, तो उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए। उन्होंने नेताओं को यह नसीहत भी दी कि उन्हें किसी की आलोचना के वक्त भी गलत भाषा के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

लोकसभा अध्यक्ष ने विपक्ष के इस आक्षेप को खारिज किया कि वे किसी दबाव के तहत काम कर रही हैं और विपक्षी सदस्यों को सदन में बोलने के लिए पर्याप्त वक्त नहीं दे रही हैं। उन्होंने कहा-लोकसभा का रजिस्टर सबके लिए खुला है और इसे कोई भी देख सकता है। अगर केवल दो सदस्यों वाली पार्टी भी सदन में अपनी बात कहने की इजाजत मांगती है, तो मैं ऐसी पार्टी को बोलने का मौका देने का प्रयास करती हूं। प्रश्नकाल के वक्त अगर मुख्य सवाल भाजपा का होता है, तब मैं पूरक प्रश्न करने के लिए कभी कांग्रेस तो कभी माकपा को महत्त्व देती हूं। मुझे सभी पार्टियों को तवज्जो देनी है। अगर कोई सदस्य सदन में किसी विषय को उठाने के लिए मुझसे नियमानुसार अनुमति मांगेगा, तो मैं उसे अनुमति दूंगी।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़े ‘संस्कृत बनाम जर्मन’ विषय को ‘राजनीतिक तौर पर’ पेश किए जाने की आलोचना करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के तहत भारतीय विद्यार्थियों को अलग-अलग देशों की भाषाएं सीखनी चाहिए। लेकिन देश में संस्कृत पढ़ाए जाने के मामले में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। संस्कृत को हम सभी भारतीय भाषाओं की मां मानते हैं और यह भाषा हमें सदियों से संस्कारों और पर्यावरण की रक्षा का संदेश दे रही है। लेकिन विदेशी भाषाएं सीखते समय हमें भारतीय भाषाओं को नहीं भूलना चाहिए। भारतीय भाषाएं हमारी मां, मौसी और बुआ की तरह हैं।