नोटबंदी ने आम लोगों के जीवन को किस तरह से प्रभावित किया है, इसका सबसे बड़ा सबूत लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था संसद में करीब तीन हफ्ते से मची अफरातफरी है। सारे मुद्दे दरकिनार करके राज्यसभा और लोकसभा के शीतकालीन सत्र में केवल नोटबंदी की बात हो रही है। सत्ता पक्ष के जो नेता संसद में पार्टी अनुशासन और पार्टी नेतृत्व की नाराजगी के डर से नोटबंदी के पक्ष में बोल रहे हैं, वे भी संसद से बाहर आकर निजी बातचीत में नोटबंदी का रोना रो रहे हैं। कांग्रेस के लोकसभा में नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा की आपबीती को लोकसभा में उठाते हुए कहा था कि किस तरह से आम और खास आदमी इस नोटबंदी से परेशान है। निजी बातचीत में भी उनका कहना था कि यह कौन-सा विधान है जिससे अपना पैसा बैंक से नहीं निकाला जा सकता है। केंद्र सरकार के एक राज्यमंत्री ने कहा कि शहरों के एटीएम और बैंक में तो कुछ पैसे मिल भी जा रहे हैं, गांवों में तो पैसे ही नहीं पहुंच रहे हैं। सरकार को इस मुद्दे पर समर्थन दे रही वाइआरएस कांग्रेस के सांसदों ने तो संसद परिसर में प्रेस कांफ्रेंस करके सरकार से पूछा कि काला धन खत्म हो, यह हम सभी चाहते हैं। लेकिन हम अपने यहां के लोगों को क्या जबाब दें जिनका सब कुछ इस नोटबंदी से चौपट होता जा रहा है। विपक्ष के सदस्य तो खुलेआम और सत्ता पक्ष के सदस्य निजी बातचीत में नोटबंदी के चलते दुखी हैं और अपने लोगों से इस मुद्दे पर जबाब देने से बच रहे हैं।

अमूमन दिल्ली से बाहर के ज्यादातर सांसद शुक्रवार को अपने इलाके में लौट जाते हैं और सोमवार को वापस लौटते हैं। बिहार और झारखंड के कई सांसदों का कहना है कि गांवों में तुरंत नकदी की समस्या नहीं है। लेकिन आखिर कब तक लोग उधार से अपना काम चलाएंगे। सबसे बड़ी समस्या तो बैंक और एटीएम की कमी और उसमें रुपयों की कमी है। कई-कई दिन प्रयास करके भी लोग अपने थोड़े से पुराने नोट नहीं बदल पाए। इतना ही नहीं, किसी बीमारी में तो लोगों के हाथ-पांव फूलने लग रहे हैं। कहने के लिए तो केंद्रीय मंत्री विजय गोयल दावा कर रहे हैं कि लोग लाइन में लगकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काले धन के खिलाफ चलाए जाने वाले इस सबसे बड़े अभियान का साथ दे रहे हैं। दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी का कहना है कि लाइन अब छोटी हो रही है। हर स्तर पर चौकसी होने से लोगों की पेरशानियां कम हुई है। बिधूड़ी उत्तर प्रदेश भाजपा के सह प्रभारी हैं। उनका दावा है कि गांवों में लोगों को अब कोई परेशानी नहीं हैं। बैंक और एटीएम में पैसे पहुंच गए हैं। दिल्ली भाजपा के नए अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि बड़े काम में कुछ तो परेशानियां भी होंगी, लेकिन लोगों को प्रधानमंत्री पर भरोसा है इसलिए सभी परेशानी झेलने के लिए तैयार हैं। उनका दावा है कि सरकार की तैयारी से लोगों की दुश्वारियां कम हो गई हैं।
झारखंड प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और गिरिडीह के सांसद रवींद्र राय ने कहा कि लोगों ने अपनी परेशानियों को प्रधानमंत्री के कालाधन खत्म करने के बड़े उद्देश्य के चलते भरपूर समर्थन दिया है। उनका मानना है कि दो हजार के नए नोटों की तरह ही पांच सौ के नए नोट भरपूर संख्या में आने के बाद हालात सामान्य हो जाएंगे। आज शुक्रवार को भी अन्य दिनों की तरह ही लोकसभा केवल औपचारिता के लिए चली।

जो लोग नोटबंदी से परेशानी नहीं होने का दावा कर रहे हैं, वे ही संसद परिसर में लगे तीनों एटीएम में बार-बार नकदी न होने के सवाल को टाल जा रहे हैं। जिन एटीएम पर पैसे आने की खबर मिलते ही मिनटों में लाइन लग जाती है, उसमें पत्रकार और संसद भवन के कर्मचारी ही नहीं होते, बल्कि संसद परिसर के तमाम सुरक्षाकर्मी भी मौका देखकर लाइन में लग जाते हैं। पहले तो संसद भवन की भारतीय स्टेट बैंक की शाखा में नोट बदलने के लिए पैरवी लगाकर सांसदों के साथ पत्रकार भी लाइन में लगे जा रहे थे। उस शाखा में सांसदों के एकाउंट हैं। बाद में बैंक ने केवल उस शाखा के ग्राहकों को ही अपने एकाउंट से पैसे निकालने का फरमान सुना दिया। उसके बाद बैंक में तो भीड़ कम हो गई, लेकिन एटीएम पर रोज भीड़ लगती रही। आमतौर पर लोकसभा की कार्यवाही न चलने पर कुछ ही समय में संसद परिसर में सन्नाटा पसरने लगता है, लेकिन शाम तक लोग नोट बदलने और एटीएम से रुपया निकलवाने के चक्कर में परिसर में ही सक्रिय दिखते हैं। यह रोज का आलम है। लगता है कि यही सिलसिला सत्र भर आगे भी चलता रहेगा।

16 नवंबर से 15 दिसंबर तक संसद का शीतकालीन सत्र चलने की घोषणा की गई थी। लोकसभा तो पहले दिन अपने एक सदस्य की मौत पर शोक प्रकट करके स्थगित हुई, लेकिन राज्यसभा में पहले ही दिन से और लोकसभा दूसरे दिन से केवल नोटबंदी पर ही हंगामा होता रहा। सरकार ने जीएसटी संशोधन विधेयक लाने की बात कही थी, केवल एक बिल आया, वह भी इसी नोटबंदी से जुड़ा हुआ और उसे भी लोकसभा में बिना चर्चा पास किया गया। नोटबंदी पर लगातार विपक्ष आंदोलन चलाता रहा। संसद परिसर के अंदर और बाहर लगातार धरना-प्रदर्शन होता गया। कई बार विपक्ष के नेता राष्ट्रपति से मिले और कई दल तो देश भर में आंदोलन चला रहे हैं। आठ नवंबर को अचानक प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने काला धन खत्म करने के नाम पर 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए। ये नोट कुल करंसी के 86 फीसद थे। तब से पूरे देश में कोहराम मचा है। संसद भी उससे अछूती नहीं रही। प्रधानमंत्री पूरे समय संसद परिसर के अपने दफ्तर में बैठते रहे और कुछ-कुछ समय सदन के दोनों सदनों में भी जाते रहे। लेकिन विपक्ष की संसद में इस मुद्दे पर बयान देने की मांग उन्होंने नहीं मानी। विपक्ष लगातार इस विषय पर नियम 56 के तहत कार्यस्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की मांग कर रहा है, लेकिन सत्ता पक्ष किसी और नियम में चर्चा करवाना चाहता है। लगता नहीं कि आने वाले दिनों में भी संसद के इस शीतकीलीन सत्र में नोटबंदी के अलावा कोई काम हो पाएगा।