दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी एकल पीठ के उस फैसले को शुक्रवार (9 दिसंबर) को दरकिनार कर दिया जिसमें प्रमुख विदेशी प्रकाशकों की पाठ्य पुस्तकों की फोटोकॉपी कर उसकी बिक्री की अनुमति दी गई थी। ये पुस्तकें ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस और कैंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित हैं जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर स्थित एक दुकानदार इनकी फोटोकॉपी कर छात्रों को बिक्री कर रहा था। उच्च न्यायालय के फैसले से हालांकि प्रकाशकों को तुरंत कोई राहत नहीं मिली है। न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति योगेश खन्ना की पीठ ने इस मामले में लंबित वाद बहाल कर दिया। पीठ ने कहा कि यह देखा जाना चाहिये कि पूरी किताब को फोटोकॉपी कर बेचना क्या अनुमति प्राप्त गतिविधि है और क्या कॉपीराइट प्राप्त कार्य को छात्रों के कोर्स में शामिल किया जाना न्यायोचित है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई अगले साल 4 जनवरी के लिये तय करते हुये कहा है, ‘तथ्यों को जानने के मुद्दे पर इसकी तारीख आगे बढायी जा रही है, इसके लिये पक्षों को मामले के विशेषज्ञों को गवाह के तौर पर पेश करने की भी अनुमति दी गई है।’ उच्च न्यायालय की पीठ ने अपने फैसले में इस बात पर भी गौर किया है कि एकल पीठ ने मामले में फोटोकॉपी करने वाली दुकान ‘रामेश्वरी फोटोकॉपी सर्विस’ के खिलाफ फोटोकॉपी करने पर अंतरिम रोक लगाने का आवेदन यह कहते हुये खारिज कर दिया था कि मामले में आगे सुनवाई का कोई मामला नहीं बनता। पीठ ने कहा, ‘मामले की सुनवाई शुरू करने और मुकदमे के मुद्दे की पहचान करने के कारण हम अंतरिम रोक नहीं लगा रहे हैं लेकिन प्रतिवादी नंबर एक (रामेश्वरी फोटोकॉपी सर्विस) से कहना चाहेंगे कि वह छात्रों को जितने भी कोर्स पैक फोटोकॉपी कर बेचती है उसका पूरा रिकॉर्ड अपने पास रखे। हर छह माह में जितनी भी फोटोकॉपी कोर्स पैक छात्रों को बेचे जायें, उसे मामले में पेश किया जाये।’

