2024 में गाजियाबाद के एक कारोबारी ने गलत तरीके से कमाए गए 1.3 करोड़ रुपये दुबई-बेस्ड वॉलेट में भेजे। जांचकर्ताओं (Investigators ) ने दिल्ली के इस व्यवसायी पर फर्जी चालान और शेल कंपनियों के जरिए 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का पैसा देश से बाहर ट्रांसफर करने का आरोप लगाया।

एजेंसियों के मुताबिक, इस साल केवल क्रिप्टो वॉलेट्स के जरिए भारत से बाहर गए 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा पैसा साइबर फ्रॉड के जरिए भेजा गया। ये सभी हवाला डील्स हैं लेकिन अब डिजिटल तरीकों से इन्हें वर्चुअली ‘इधर से उधर’ किया जा रहा है। काले धन के प्रवाह की बात करें तो पुराने हवाला ने अब नए क्रिप्टो को अपना लिया है। इसके केंद्र में दो बातें हैं: टेक्नोलॉजी और क्रिप्टो को लेकर नियमों का ग्रे ज़ोन यानी नियमों की कमी।

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क्रिप्टो-हवाला का हाइब्रिड सिस्टम

दुनियाभर में इस ग्रे ज़ोन के चलते पहचान छिपी रहती है और हवाला के भरोसे पर आधारित उस नेटवर्क की दक्षता को भी इसने बढ़ा दिया है जिसमें बिना चेहरे वाले लोग (पहचान छिपाकर) औपचारिक बैंकिंग सिस्टम के बाहर काम करते हैं। एक प्रमुख भारतीय क्रिप्टो प्लेटफॉर्म के वरिष्ठ अनुपालन अधिकारी ने कहा, “अब पहचान छिपाने के कई तरीके हो गए हैं। पारंपरिक हवाला सौदा आमतौर पर दो न्यायक्षेत्रों (jurisdictions) के बीच होता है और भेजने और प्राप्त करने वाले के बीच चार से ज्यादा परतें शामिल नहीं होतीं। लेकिन क्रिप्टो के आने पर फंड के प्रवाह में असीमित परतें (infinite layers) और ज्यूरिसडिक्शंस (देश) जोड़े जा सकते हैं। यानी ब्लॉकचेन लेनदेन में किसी भी परिस्थिति में नकली नाम (असली पहचान छिपाने) का सुरक्षा कवच मिलता है।”

क्रिप्टो-हवाला का यह उभरता हुआ हाइब्रिड सिस्टम, चोरी-छिपे किए जा रहे फानेंशियल ट्रांजैक्शन के लिए तेजी से पॉप्युलर हो रहा है। और इसे समझने व रोकने के लिए नियामक एजेंसिया संघर्ष कर रही हैं।

एक निजी रिकवरी कंसल्टेंट ने कहा, “यह सिस्टम खासकर रियल एस्टेट, बेटिंग- चाहे क्रिकेट हो या अन्य, सोना और फॉरेक्स ट्रेडिंग जैसे क्षेत्रों में बहुत तेजी से बढ़ा है। इसका इस्तेमाल सामान्य पैसे भेजने (रेमिटेंस) के लिए भी होता है। आतंक या नशीले पदार्थों की फंडिंग और फिनटेक धोखाधड़ी बड़ी चेतावनी हैं, बाकी मामला काले धन और FEMA उल्लंघनों का है।” यह कंसल्टेंट इस तरह की डील में गड़बड़ होने पर ‘अनौपचारिक क्षमता’ में पैसे वापस दिलाने में मदद करते हैं।

हवाला का पैसा रिकॉर्ड्स से बाहर

हवाला के जरिए भारत में आने–जाने वाला पैसा रिकॉर्ड्स से बाहर रहता है और जानबूझकर छिपाया जाता है, इसलिए इसका सही अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है।

2023-24 के दौरान, RBI ने भारत में कुल 118.7 अरब डॉलर के रेमिटेंस आने और लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत 31.73 अरब डॉलर बाहर जाने की रिपोर्ट दी। विभिन्न आकलनों के अनुसार, भारत के कुल रेमिटेंस का 20-40% हवाला के जरिए भेजा जाता है। सूत्रों के अनुसार, इन अनौपचारिक लेनदेन का एक बड़ा हिस्सा अब क्रिप्टो के रास्ते जा रहा है जिसमें शेल बैंक खाते, ओवर-द-काउंटर (OTC) या पीयर-टू-पीयर (P2P) ट्रांसफर, स्वयं-नियंत्रित (self-custody) वॉलेट और गैर-अनुपालन/अनियमित एक्सचेंज शामिल हैं।

मनी लॉन्डरिंग नियमों का पालन करने वाले औपचारिक प्लेटफॉर्म की तुलना में, OTC या P2P लेनदेन आमतौर पर सिर्फ दो लोगों के बीच होता है। इसलिए यह प्रवर्तन एजेंसियों की नजर से बच जाता है।

Self-custody वॉलेट किसी भी क्रिप्टो एक्सचेंज द्वारा होस्ट नहीं किए जाते। वॉलेट का मालिक अपनी private key से इसे खुद कंट्रोल करता है। जब तक यह वॉलेट किसी नियमित क्रिप्टो प्लेटफॉर्म से नहीं जुड़ता, उसकी पहचान गुमनाम रहती है क्योंकि ऐसे वॉलेट से जुड़े किसी भी लेनदेन पर अतिरिक्त KYC जांच लागू होती है।

फंड के सोर्स को और ज्यादा छुपाने के लिए, “टंबलर” या “मिक्सर” वॉलेट जैसे खास टूल इस्तेमाल किए जाते हैं। ये कई यूजर्स के क्रिप्टो कॉइनों को एक जगह मिलाते हैं और फिर बराबर राशि नए वॉलेट्स में भेज देते हैं जिससे असली सोर्स छिप जाता है। अक्सर “ब्रिज” और “स्वैप” तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है जिससे संपत्ति एक ब्लॉकचेन से दूसरे (जैसे Bitcoin से Solana) में बदली जाती है, इससे लेनदेन का ट्रेल ट्रैक करना और मुश्किल हो जाता है।

क्रिप्टो–हवाला लेनदेन के कई तरीके

इन सबसे क्रिप्टो–हवाला लेनदेन करने के कई तरीके बन जाते हैं। सबसे सरल रूप में प्रक्रिया ऐसे काम करती है: जैसे भारत में रेमिटर (पैसा भेजने वाला) अक्सर कई डमी खातों में अपना फंड तैयार करता है। फिर यह पैसा किसी अज्ञात व्यक्ति के शेल बैंक खाते में ट्रांसफर किया जाता है। खबरों के अनुसार, यूपीआई पर क्यूआर कोड इसका सबसे लोकप्रिय माध्यम बन चुका है।

एक बैंक अधिकारी, जिन्होंने कई जांच एजेंसियों को मनी लॉन्ड्रिंग की जांच में मदद की है। उनके अनुसार ऐसे म्यूल अकाउंट (दूसरों के नाम पर चलाए जाने वाले बैंक खाते) अक्सर बहुत कम समय तक एक्टिव रहते हैं। क्योंकि बैंक अब ज्यादा सतर्क हो गए हैं- 50,000 रुपये से कम में बार-बार किया जाने वाला ट्रांसफर (smurfing), बार-बार कई सोर्सेज से पैसा जमा होना और जमा होते ही तुरंत डिजिटल ट्रांसफर जैसे पैटर्न पर तुरंत नजर रखी जाती है।

इसके बाद, रेमिटर को USDT या अन्य स्टेबलकॉइन पहले से तय रेट पर उनके विदेश स्थित क्रिप्टो वॉलेट (जैसे दुबई) में मिल जाता है। वॉलेट में आते ही USDT को तुरंत दिरहम (AED) में, दुबई में किसी भी क्रिप्टो ATM के जरिए बैंक खाते में या किसी OTC डेस्क पर नकद में बदला जा सकता है।

छोटी रेमिटेंस वाले और नॉन-कस्टडी वॉलेट चलाने वालों के लिए नकद निकासी का ऑप्शन ज्यादा सुविधाजनक रहता है। इस स्टेज, हवाला ऑपरेटर (ब्रोकर) अपना कमीशन/मार्जिन लोकल कैश में एडजस्ट करके करके पूरा ट्रांजैक्शन साइकल को पूरा कर देते हैं।

मनी ट्रेल दुबई पर ही नहीं रुकती

हवाला के जरिए भेजे जाने वाली मनी ट्रेल दुबई पर ही नहीं रुकती, USDT के रूप में इसे कहीं भी किसी भी वॉलेट में डिलीवर किया जा सकता है। अनुपालन अधिकारी ने कहा, “यह virtually कहीं भी जा सकता है, एक या कई गैर-अनुपालन, संदिग्ध क्रिप्टो प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिए और फिर मनचाहे समय और जगह पर नकद में बदला जा सकता है। कई क्रिप्टो एक्सचेंज, जिन्हें भारतीय यूज़र्स इस्तेमाल करते हैं वे FIU (Financial Intelligence Unit) में रजिस्टर्ड ही नहीं हैं।”

पिछले महीने ही, FIU-इंडिया ने 25 ऑफशोर Virtual Digital Asset (VDA) सर्विस प्रोवाइडर्स को नोटिस जारी किए क्योंकि उन्होंने PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट), 2002 का उल्लंघन किया था। इस सूची में शामिल प्लेटफॉर्म- Huione (कम्बोडिया), BC.game (क्यूरासाओ),LBank, BingX (दोनों ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स), BitMex, Probit Global (दोनों सेशेल्स), PrimeXBT (सेंट लूसिया), LCX (लिकटेंस्टीन) और BTSE (लिथुआनिया) शामिल हैं।

अनुपालन अधिकारी ने कहा,“कुछ विदेशी एक्सचेंज जैसे (सेशेल्स-रजिस्टर्ड) OKX-भारत से निकल चुके हैं और कुछ (Binance और Coinbase) ने FIU में रजिस्ट्रेशन कर लिया है। लेकिन यूजर्स के लिए अभी भी चीजें छिपाने के कई विकल्प मौजूद हैं।”

हालांकि, कई बार सौदों में गड़बड़ी हो जाती है और पीड़ितों के पास तकनीकी-वैधानिक मदद (techno-legal help) के लिए प्राइवेट एक्सपर्टर्स पर निर्भर होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। रिकवरी कंसल्टेंट ने बताया कि ऐसे पीड़ित आम तौर पर हाई नेटवर्थ वाले व्यक्ति होते हैं जो “जाहिर वजहों” से क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों के पास नहीं जाते और निजी नेगोशिएटर्स पर भरोसा करते हैं।

उन्होंने कहा,“हवाला भरोसे पर चलता है और नए खिलाड़ी धोखेबाज़ हो सकते हैं। एक ब्रोकर, रुपये की जमा राशि लेने के बाद गायब हो गया। एक दूसरे मामले में USDT, वॉलेट से ‘क्लियर होने से पहले’ ही गायब हो गया। लेकिन पुलिस के पास जाना मतलब PMLA के तहत फंसना होगा।”

एन्फ़ोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने क्रिप्टो से जुड़े कई हवाला मामलों का पता लगाया है। एजेंसी ने UAE से Common Reporting Standard (CRS) सिस्टम के अलावा, ओटावा स्थित EGMONT Group of FIUs से FIU-IND के जरिए जानकारी हासिल की जो देशों को वित्तीय और कर से संबंधित जानकारी ऑटोमैटिकली शेयर करने की अनुमति देती है।