एक 26 वर्षीय युवक जो बीते करीब दो सालों से अमेरिकन एक्सप्रेस में नौकरी कर रहा था, उसे अचानक ही नौकरी से निकाले जाने का नोटिस मिल गया। दरअसल वह सीधे तौर पर अमेरिकन एक्सप्रेस के पेरोल पर नहीं था और एक आउटसोर्सिंग कंपनी के जरिए अमेरिकन एक्सप्रेस से जुड़ा था। 14 मई को अचानक उन्हें कंपनी की ओर से यह कहा गया कि अब उनकी नौकरी समाप्त होती है। दक्षिण दिल्ली का रहने वाला वह युवक देश के ऐसे लाखों लोगों में से एक है, जिसे इस तरह से नौकरी गंवानी पड़ी है। फाइनेंस, रिटेल, इंश्योरेंस और ई-कॉमर्स समेत तमाम कंपनियों में काम करने वाले लोगों को इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल यह समस्या ऐसे कर्मचारियों को पहले झेलनी पड़ रही है, जो कॉन्ट्रैक्ट पर हैं। इसकी वजह यह है कि कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले लोगों को नौकरी से निकाले जाने पर कंपनी को किसी भी तरह से कानूनी झंझट में नहीं पड़ना होता है। युवक को अमेरिकन एक्सप्रेस की बिजनेस यूनिट की एचआर टीम से जो लेटर मिला, उसमें लिखा था, ‘कई क्लाइंट्स ने हमें काम देना बंद कर दिया है। कई अन्य क्लाइंट्स का भविष्य भी अनिश्चित है औऱ उनकी ओर से हमें स्टाफ में कमी करने के लिए कहा गया है।’
ऐसे कर्मचारियों को कंपनियों की ओर से सिर्फ 30 दिन के नोटिस पीरियड की ही सैलरी दे रही हैं। यह स्थिति लगभग तमाम सेक्टर्स में देखने को मिल रही है और कंपनियां लागत में कमी करने के नाम पर सबसे पहले कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों को ही हटा रही हैं। खासतौर पर थर्ड पार्टी के जरिए नौकरी करने वाले कर्मचारियों को अधिक संकट का सामना करना पड़ रहा है।
इसके अलावा ऐसी भी कई कंपनियां हैं, जो किसी बड़ी कंपनी के लिए सपोर्ट का काम करती हैं। ऐसी कंपनियों को पैरेंट कंपनी के संकट में घिरने पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे संकट में बड़ी कंपनियों के कर्मचारी तो एक तरह से सुरक्षित हैं, लेकिन उनके सपोर्ट के लिए काम कर रही कंपनियों को संकट का सामना करना पड़ रहा है।