कोरोना वायरस के संकट के चलते देश और दुनिया में लगभग सभी सेक्टर्स को संकट का सामना करना पड़ा है। इसके बाद भी किसी कंपनी की क्षमता को उसके मुनाफे या नुकसान के जरिए नहीं मापा जा सकता। भारतीय स्टेट बैंक की ईकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे संकट के दौर में वे कंपनियां ही बच सकेंगी, जो कैश रिच हैं और उनकी बैलेंसशीट मजबूत है। कोरोना संकट के चलते फाइनेंशियल ईयर 2020 की आखिरी तिमाही में ज्यादातर सेक्टर्स की कंपनियों को निगेटिव ग्रोथ का सामना करना पड़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक ऑटोमोबाइल, एफएमसीजी, कन्ज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों को कमजोर ग्रोथ का सामना करना पड़ा है, लेकिन उन्हें इस संकट से निपटने के लिए अपनी बैलेंस शीट को मजबूत बनाए रखने की जरूरत है।
उदाहरण के तौर पर हम देखें तो कन्ज्यमूर ड्यूरेबल सेक्टर एक ऐसा सेक्टर है, जिसके पास कैश का संकट नहीं है और कर्ज के मुकाबले बैंक बैलेंस का अनुपात काफी अच्छा है। ऐसें किसी भी तरह के संकट में यह सेक्टर अपने कैश रिजर्व के जरिए तरलता को बढ़ाया जा सकता है। हालांकि शुगर, स्टील, टेलिकॉम, कंस्ट्रक्शन जैसे सेक्टर कैश रिच नहीं हैं। ऐसे में अनिश्चितता का यह दौर इन सेक्टर्स पर बड़ा विपरीत असर डाल सकता है। कोरोना संकट के बाद से ही तमाम सेक्टर्स में कई कंपनियों को डाउनग्रेड किया जा चुका है। कैपिटल गुड्स और इंजीनियरिंग में ही मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 870 डाउनग्रेड हुए हैं, जबकि 50 अपग्रेड हुए हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना का यह संकट अप्रत्याशित है और ऐसी कंपनियां ही इस दौर में बच पाएंगी, जिनके पास बड़ी मात्रा में कैश की उपलब्धता है। एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोरोना वायरस के इस संकट से निपटने हुए लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर 12 अप्रैल को देखने को मिला था। हालांकि जून महीने के शुरुआती दो सप्ताह में कुछ सुधार देखने को मिला है और कारोबारी गतिविधियों में तेजी देखने को मिली है। इसके अलावा लॉकडाउन के पहले और दूसरे चरण में बैंकों में जमा राशि में इजाफा हुआ है, जबकि तीसरे लॉकडाउन के बाद यह लेवल कम हुआ है।