दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर ने गुरुवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अनुरोध किया कि वे सरकार की ओर से बुधवार को मंजूर किए गए बीमा और कोयला खदान संबंधी अध्यादेशों पर मुहर नहीं लगाएं। उन्होंने इन अध्यादेशों को पूरी तरह गैरकानूनी और संविधान के साथ छल करार दिया। सरकार ने संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होने के एक दिन बाद ही बुधवार को बीमा व कोयला क्षेत्र संबंधी अध्यादेशों को मंजूरी दी थी। उधर जनता दल (एकी) ने भी यह अध्यादेश लाने के सरकार के निर्णय की गुरुवार को कड़ी आलोचना की और राष्ट्रपति से इसे मंजूरी न देने का अनुरोध किया।
सच्चर ने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार को निसंकोच स्वीकार कर लेना चाहिए कि वह ये अध्यादेश इसलिए जारी कर रही है क्योंकि वह संसद में इन विधेयकों को पास नहीं करा सकती। राष्ट्रपति के लिए यही ठोस वजह है कि वे अध्यादेश पर मुहर लगाने से इनकार कर दें।
उन्होंने कहा कि अगर यह विषय इतना जरूरी था तो संसद सत्र की अवधि क्यों नहीं बढ़ाई गई। उम्मीद है कि राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने से मना कर देंगे। सच्चर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में कहा था कि अध्यादेश का अधिकार कार्रवाई करने के आपात अधिकार की प्रकृति वाला है, जिसे असामान्य स्थिति में अपनाना चाहिए और राजनीतिक मकसद से इसे बिगाड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
उन्होंने कहा कि कहीं अध्यादेश लाने की केंद्र की विवशता विदेशी निवेशकों के साथ गुप्त समझौते से तो नहीं उपजी है जो कानून की इस अनिश्चित स्थिति में किसी भी हालत में निवेश नहीं करेंगे। सच्चर ने कहा कि कोयला खदानों पर अध्यादेश लाना कोयला खदान राष्ट्रीयकरण अधिनियम का उल्लंघन है क्योंकि इस कानून में निजी पक्षों की ओर से कोयले के खनन पर पाबंदी है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को बीमा और कोयला क्षेत्र संबंधी अध्यादेशों को मंजूरी दी थी। इसके अलावा चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र में विदेशी निवेश को उदार बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी थी। बीमा और कोयला क्षेत्र में अहम सुधारों को गति देने की पहल के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को यह भी कहा था कि अगर संसद का एक सदन अनिश्चित काल तक इंतजार करने लगे तो देश उसकी प्रतीक्षा नहीं कर सकता। उन्होंने संकेत दिया था कि अगर अगले सत्र में राज्यसभा में बीमा विधेयक को फिर रोका जाता है तो सरकार संसद का साझा सत्र बुलाने की हद तक जा सकती है। मंगलवार को समाप्त हुए संसद सत्र के दौरान बीमा और कोयला विधेयकों पर राज्यसभा में चर्चा नहीं कराई जा सकी।
उधर जनता दल (एकी) ने भी यह अध्यादेश लाने के सरकार के निर्णय की गुरुवार को कड़ी आलोचना की और राष्ट्रपति से इसे मंजूरी न देने का अनुरोध किया। पार्टी महासचिव केसी त्यागी ने यहां एक बयान में कहा कि जद (एकी) सरकार की ओर से बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और कोयला खदान आबंटन के संबंध में अध्यादेश का रास्ता अपनाने के फैसले का कड़ा विरोध करती है और राष्ट्रपति से अनुरोध करती है कि वे संसद को नजरअंदाज करने वाले किसी अध्यादेश को स्वीकृति न दें।
त्यागी ने कहा कि इससे एक गलता परंपरा कायम होगी और इसलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अध्यादेश का रास्ता अपनाकर सरकार संस्थाओं को कमजोर करने और राज्यसभा को नजरअंदाज करने का प्रयास कर रही है, क्योंकि उच्च सदन में उसके पास बहुमत नहीं है।