दुनिया भर में चीन की आर्थिक वृद्धि की चर्चा रही है। लेकिन, ‘चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्ग-कॉन्ग’ के एक अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक चीन ने 2008 से लेकर 2016 तक आंकड़ों में घालमेल करके अपनी आर्थिक वृद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता रहा। 9 साल तक उसने औसतन 1.7 फीसदी का अतिरिक्त गलत आंकड़ा पेश किया।
ब्रुकिंग्स संस्थान द्वारा छपे एक ड्राफ्ट पेपर में लेखक वेई चेन, लू चेन, चांग ताई और ज़ेंग सोन्ग ने लिखा है कि अक्सर आंकड़ों में बाजीगरी करने वाला बीजिंग स्थित ‘नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिक्स’ (एनबीएस) स्थानीय स्तर पर आंकड़ों में हेर-फेर कर रहा था। लेकिन, 2008 से वह इसे दक्षता से करने में कामयाब नहीं रहा। इकोनॉमिक्स टाइम्स ने इस खबर के हवाले से बताया कि काफी समय से चीन आंकड़ों में हेर-फेर करके अपनी विकास-गति और क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहा था। लेखकों ने लिखा है, “स्थानीय आंकड़े 2008 के बाद से पेश किए गए संख्याओं से बिल्कुल मेल नहीं खा रहे थे। लेकिन, इस संदर्भ में एनबीएस द्वारा कोई भी तालमेल नहीं बैठाया जा रहा था।” संशोधित आंकड़ों पर गौर फरमाया गया तो पता चला कि चीन की अर्थव्यवस्था का विकास 2008 के बाद काफी धीमे रहा है और यह आंकड़ा सरकारी आंकड़े से बिल्कुल अलग था।
इकोनॉमिक्स टाइम्स का कहना है कि इस संबंध में चीन के एनबीएस ने फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। वैश्विक स्तर पर चीन की अर्थव्यवस्था का आंकवन विवादों का विषय रहा है। कभी इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने या कमतर करके आंकने की बात सामने आती रही है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक चीनी अर्थव्यवस्था सटिक आंकड़ों से हमेशा दूर रही है। दरअसल, स्थानीय स्तर पर अधिकारी आंकड़ों में बाजीगरी इसलिए भी करते हैं क्योंकि उन्हें इसके बदले प्रोत्साहन और प्रोमोशन मिलता है। लिहाजा, क्षेत्रीय जीडीपी का आंकड़ा अमूमन डबल डिजिट के आस-पास रहता है। बीते कुछ सालों में नेशनल अथॉरिटी ने इस संबंध में निजी कंपनियों से विकास संबंधी डाटा जुटाने की जिम्मेदारी सौंपी है। जिसमें अधिकारियों की करतूतें उजागर हुई हैं। इस संदर्भ में चीन की ओर से जांच भी कराई जा रही है।