Why Indian Army used Royal Enfield Bullet: रॉयल एनफील्ड बुलेट और भारतीय सेना का बहुत पुराना नाता है। लंबे अर्से से इंडियन आर्मी रॉयल एनफील्ड के शानदार बाइकों का इस्तेमाल अपने दस्ते में कर रही है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर भारतीय सेना के दस्ते में इसी बाइक को क्यों शामिल किया गया। आज हम आपको बताएंगे भारतीय सेना द्वारा रॉयल एनफील्ड का इस्तेमाल किए जाने की असल वजह।
शुरूआती दौर में भारतीय सेना ट्रॉयम्प और बीएसए की बाइकों का इस्तेमाल करती थी। लेकिन उस दौरान इन बाइकों के मैकेनिज्म और तकनीकी इतनी आधुनिक नहीं थी जिसके चलते सेना को कई तरह के मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन 1949 में पहली बार ब्रिटिश बाइक मैन्युफैक्चरर कंपनी रॉयल एनफील्ड की बाइकों को भारतीय सेना में शामिल किया गया।
पिछले 70 सालों के इस रिश्ते के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। जैसा कि हमने आपको बताया उस दौर में ट्रायम्प और बीएसए की बाइकें सेना के प्रयोग के लिए इतनी कारगर साबित नहीं हो रही थीं। तो भारतीय सेना ने किसी दूसरी बाइक के प्रयोग का मन बनाया। उस समय रॉयल एनफील्ड की बाइकों का प्रयोग ब्रिटिश आर्मी के अलावा कई अन्य देश की सेनाओं द्वारा भी किया जाता था। यहां तक की द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी रॉयल एनफील्ड की ही बाइकों का प्रयोग किया गया था।
उस समय भारतीय सेना ने सीमा पर गश्ती के लिए रॉयल एनफील्ड की बाइकों को चुना। कंपनी द्वारा बाइकों को भारतीय सेना के पास टेस्टिंग के लिए भेजा गया। उस समय इन बाइकों को पंजाब के सीमावर्ती इलाकों में परीक्षण किया गया। चूकिं वहां की सड़कें बेतरतीब थीं इसलिए इनका वहां परीक्षण किया जाना जरूरी था। इस टेस्टिंग में बाइकों को सफल पाया गया और भारतीय सेना ने रॉयल एनफील्ड की बाइकों के पहली खेप का आॅर्डर किया।
कंपनी ने पहली बार 350 सीसी की क्षमता वाले 4 स्ट्रोक रॉयल एनफील्ड बाइकों की सप्लाई शुरू की। इसके अलावा भारत सरकार ने रॉयल एनफील्ड का उत्पादन अपने ही देश में करने का मन बनाया। इसके लिए सरकार ने मद्रास अब चेन्नई में रॉयल एनफील्ड की पहली फैक्ट्री लगाई।
सन 1955 में रॉयल एनफील्ड ने मद्रास मोटर्स की साझेदारी में बाइकों की असेंबलिंग शुरू की। उस समय 350 सीसी की बाइकों को रेडिच से लाया जाता था और मद्रास फैक्ट्री में उनकी असेंम्बलिंग की जाती थी। जल्द ही, टूलींग को एनफील्ड इंडिया को बेच दिया गया ताकि वे स्थानीय स्तर पर उपकरणों का निर्माण कर सकें। सन 1962 तक जो भी बुलेट भारत में इस्तेमाल किया जाता था वो पूरी तरह से देश में ही बने होते थें।
हालाँकि, 1955 के मॉडल को वर्षों तक लगभग बिना किसी बदलाव के ही रखा गया। इधर बीच कंपनी का उत्पादन स्तर लगातार बढ़ रहा था और रॉयल एनफील्ड प्रतिवर्ष 20,000 से ज्यादा बुलेट का निर्माण कर रही थी। इस दौरान बाइक के गियरबॉक्स में भी कुछ बदलाव किए गए। हालांकि भारतीय सेना को आपूर्ति किए जाने वाले बाइकों में कोई भी बदलाव नहीं किया गया था। क्योंकि ये पहले से ही भारतीय सेना के साथ तय किया जा चुका था।
समय के साथ रॉयल एनफील्ड और भारतीय सेना का रिश्ता और भी मजबूत होता गया और कंपनी भारत में ही 500 सीसी की क्षमता के बाइकों का भी निर्माण शुरू कर दिया। सन 1990 में, रॉयल एनफील्ड ने एक भारतीय ऑटोमोटिव कंपनी आयशर ग्रुप के साथ मिल कर काम करना शुरू कर दिया। सन 1994 में, आयशर ग्रुप ने पूरी तरह से रॉयल एनफील्ड का अधिग्रहण किया और रेडडिच कंपनी अब एक भारतीय कंपनी बन गई थी।
रॉयल एनफील्ड के खास फीचर्स और दमदार इंजन क्षमता के कारण भारतीय सेना में इस बाइक का प्रयोग लंबे समय से किया जा रहा है। यहां तक कि गणतंत्र दिवस पर होने वाले परेड में भारतीय सेना की एक टीम ‘श्वेत अश्व’ द्वारा रॉयल एनफील्ड 500 द्वारा स्टंट भी किया जाता है। इसके लिए इस टीम ने विश्व रिकॉर्ड भी बनाया है जो कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। उस समय ‘श्वेत अश्व’ की टीम ने 500 सीसी की रॉयल एनफील्ड पर एक साथ 48 लोगों के साथ परफॉर्म किया था। इससे पूर्व ये रिकॉर्ड ब्राजील आर्मी के पास था।