भारतीय कार निर्माताओं ने लगातार तीसरे महीने रिकॉर्ड-तोड़ गाड़ियां डिस्पैच की हैं। कार निर्माताओं ने 2,95,000 से 2,98,000 तक गाड़ियां जनवरी के महीने में डीलरों को बेची हैं। मालूम हो कि कोरोना महामारी के चलते बाजार में निजी वाहनों की मांग बड़ी है। महामारी के चलते लोग निजी वाहन लेना चाह रहे हैं और सार्वजनिक यातायात का कम से कम इस्तेमाल करना चाह रहे हैं।

साल के पहले महीने की बात की जाए तो इससे पहले 2018 में इस तरह की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री हुई थी। जब 2,85,000 यूनिट बिकीं थीं। उद्योग के जानकारों का कहना है कि इस साल जनवरी में डीलरों को बेची गई कारों में 10 से 12 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है। पिछले पांच सालों में ये अब तक सबसे अच्छा रिकॉर्ड है।

ये लगातार छठा महीना है जब निजी वाहनों के लिए होलसेल वोल्यूम में वृद्धि डबल डिजिट में देखी जा रही है। वो भी ऐसे समय में जब लॉकडाउन के दौरान इस उद्योग की कोरोना महामारी ने कमर तोड़ दी थी।

पिछले 6 महीनों में औसत वोल्यूम में 17.65 फीसदी की बढ़त देखी गई है। ETIG के आंकड़ों के मुताबिक ये पिछले एक दशक में कार बनाने वाले उद्योग की सालाना वृद्धि दर से भी ज्यादा है।

कार की बिक्री को लेकर वृद्धि दर हर एक कंपनी के लिए अलग है और उसमें काफी फर्क है। यह इसलिए क्योंकि बाजार में कुछ कंपनी की कारों की अधिक मांग है।

मालूम हो कि कुछ सालों से जनवरी महीने में वाहनों की बिक्री में कमी देखी जा रही थी। 2014 में वाहन बिक्री के लिहाज से जनवरी सबसे खराब महीना रहा था। वहीं उससे पहले 2011 में 24.7 की वृद्धि दर देखी गई थी।

माना जा रहा है कि जनवरी में ऐसा कम होती नेटवर्क इंवेंटरी और स्थिर रिटेल के चलते हुआ है। दरअसल बाजार में कई गाड़ियों को लॉन्च करने की समय अविध को भी बढ़ा दिया गया है।