रेल बजट को आम बजट में मिलाने, आम बजट एक महीना पहले पेश करने और बजट में योजना तथा गैर-योजना खर्च व्यवस्था खत्म करने के लिए वित्त मंत्रालय जल्द ही मंत्रिमंडल नोट जारी कर सकता है। सूत्रों ने कहा कि मंत्रिमंडल के समक्ष रखने से पहले इसका मसौदा अंतर-मंत्रालयी विमर्श के लिए जारी किया जाएगा। मंत्रिमंडल में इन मुद्दों पर इस माह के अंत तक विचार किया जा सकता है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल यदि वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव पर सहमति जताता है तो आम बजट फरवरी अंत के बजाय जनवरी में पेश किया जा सकता है। मंत्रालय योजना और गैर-योजना व्यय व्यवस्था को समाप्त कर इसके स्थान पर पूंजी और राजस्व खर्च की व्यवस्था लाना चाहता है। सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय इन तीनों प्रस्तावों पर इस ध्येय के साथ मंजूरी लेना चाह रहा है कि 2017-18 का बजट पेश करते समय इन्हें अमल में लाया जा सके।

आम बजट पेश करने के संबंध में संविधान में किसी खास तिथि का उल्लेख नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार की आम बजट को जनवरी आखिरी सप्ताह में पेश करने की योजना है ताकि बजट पारित करने की पूरी प्रक्रिया मार्च अंत तक पूरी की जा सके। नया वित्त वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता है। इसके अलावा रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अलग से रेल बजट पेश करने की प्रक्रिया खत्म करने के पक्ष में अपनी मंशा जाहिर की है। वह चाहते हैं कि रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया जाना चाहिए, क्योंकि रक्षा मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का बजट भी आम बजट में ही शामिल होता है। ब्रिटिश जमाने से ही भारत में लेखा की अप्रैल से मार्च अवधि की प्रणाली अपनाई जा रही है। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर लेखा प्रणाली के अनुरूप है।

सरकार ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। यह समिति मौजूदा वित्त वर्ष के स्थान पर नया वित्त वर्ष अपनाए जाने की व्यवहार्यता के बारे में अध्ययन करेगी। समिति अपनी रिपोर्ट 31 दिसंबर 2016 तक सौंपेगी। इससे पहले इस मामले पर विचार करने के लिए मई 1984 में एल के झा समिति का गठन किया गया था जिसने कैलेंडर वर्ष अपनाने की सिफारिश की थी लेकिन सरकार ने यह कहते हुए उनकी सिफारिश नहीं मानी थी कि इससे बहुत सी समस्याएं आएंगी क्योंकि ज्यादातर कंपनियां अप्रैल-मार्च वित्त वर्ष का अनुपालन करती हैं।

मौजूदा व्यवस्था में नया वित्त वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता है। चूंकि आम बजट फरवरी के आखिरी दिन पेश होता है इसलिए सरकार को मार्च में ही संसद से अनुदान मांगों पर मंजूरी लेनी पड़ती है ताकि पूर्ण बजट पारित होने तक अगले 2-3 महीनों के लिए विभिन्न मदों पर व्यय के लिए पर्याप्त राशि के लिए स्वीकृति ली जा सके। इसके बाद अप्रैल-मई में मांग एवं विनियोग विधेयक पूरी तरह पारित होता है जिसमें पूरे साल के लिये व्यय और कर संबंधी बदलाव शामिल होते हैं।