वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ऐसे वक्त में आम बजट 2020 पेश करने वाली हैं, जब देश की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। रोजगार में कमी, कमजोर निवेश और जीडीपी ग्रोथ के 5 फीसदी से भी नीचे पहुंचने के चलते उनके सामने बीते एक दशक के सबसे मुश्किल साल के बजट को पेश करने की चुनौती है। यह वह वक्त है, जब निवेश 17 साल के निचले स्तर पर है और जीडीपी ग्रोथ 11 साल के न्यूनतम लेवल पर है। अब देखना होगा कि आखिर कैसे निर्मला सीतारमण के लाल बैग से अर्थव्यवस्था के लिए ग्रीन सिग्नल मिलता है। आइए जानते हैं, कैसे निर्मला के लिए कठिन होगा यह बजट…

मांग बढ़ाने की होगी चुनौती: एक तरफ बढ़ी हुई मुद्रास्फीति की दर और दूसरी तरफ कमजोर मांग। इसके बीच संतुलन बनाना सरकार के लिए एक चुनौती होगा। आमतौर पर मांग में इजाफे के लिए रिजर्व बैंक की ओर से दरों में कटौती की जाती है। लेकिन उपभोक्ता महंगाई दर के पहले से ही 7.4 फीसदी के स्तर पर होने के चलते केंद्रीय बैंक के लिए ऐसा करना मुश्किल होगा।

कैसे आएगा निवेश, 17 साल में सबसे कम: सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ही बीते 17 सालों में वित्त वर्ष 2020 में इन्वेस्टमेंट की ग्रोथ का अनुमान महज एक फीसदी का ही है। अब तक सरकार मुश्किल दौर में निवेश के दरवाजे खोलकर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देती रही है। अब देखना होगा कि निवेश बढ़ाने के लिए सरकार कैसे और क्या कदम उठाती है।

कॉर्पोरेट टैक्स से भी नहीं भरेगी झोली: सरकार के पास अपनी झोली भरने के लिए कॉर्पोरेट टैक्स में इजाफे का एक विकल्प होगा, लेकिन ऐसा करने पर कारोबारी माहौल पर भी विपरीत असर पड़ने की संभावना है। ऐसे में सरकार को इस रास्ते पर बढ़ने से पहले भी सोचने की जरूरत होगी। बता दें कि पिछले बजट में भी कॉर्पोरेट टैक्स में इजाफे के ऐलान के बाद सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े थे।

क्या पूरी होगी आयकर में कमी की आस: पर्सनल टैक्स में कटौती की उम्मीद हर साल मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के लोग लगाते रहे हैं। शायद मि़डिल क्लास को लुभाने के लिए सरकार इस दांव को चलना चाहे, लेकिन ऐसा होने पर राजकोषीय घाटे में इजाफा होने का संकट होगा।