नई दिल्ली। वित्त मंत्रालय ने देश और विदेश में काले धन के आकलन के बारे में उसे सौंपी गई तीन रपटों में से दो को स्वीकार नहीं किया है। पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने तीन साल पहले यह अध्ययन कराने का आदेश दिया था।
ये अध्ययन दिल्ली के राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी), नेशनल काउंसिल और एप्लाइड इकनामिक रिसर्च (एनसीएईआर) तथा फरीदाबाद के राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान (एनआईएफएम) ने किये हैं।
वित्त मंत्रालय ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में कहा है, ‘‘एक संस्थान से रिपोर्ट मिल चुकी है और उसे स्वीकार कर लिया गया है। दो अन्य संस्थानों से भी रिपोर्ट मिली है लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया है।’’ हालांकि, आरटीआई कानून में छूट का हवाला देते हुए वित्त मंत्रालय ने रपटों के ब्योरे देने से इनकार किया है।
ये अध्ययन 18 माह में पूरे होने थे, जिसकी समयसीमा 21 सितंबर, 2012 को समाप्त हो गई। वित्त मंत्रालय ने हालांकि यह नहीं बताया कि ये रपटें किन तारीखों को सौंपी गईं। अभी तक देश और विदेश में जमा काले धन के बारे में कोई आधिकारिक अनुमान उपलब्ध नहीं है।
वित्त मंत्रालय ने 2011 में इन अध्ययनों का आदेश देते हुए कहा था, ‘‘हाल के समय में काले धन का मुद्दा आम लोगों व मीडिया में काफी चर्चा का विषय रहा है। अभी तक देश या विदेश में कालेधन के बारे में कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है।’’
विभिन्न अनुमानों में काले धन का आंकड़ा 500 अरब से 1,400 अरब डॉलर आंका गया है। अध्ययन के नियम व शर्तों के तहत इसके तहत बेहिसाबी आय व संपदा का आकलन करने के अलावा देश व विदेश में मनी लांड्रिंग गतिविधियों की प्रकृति का पता लगाना है। इसके अलावा अध्ययन के तहत अर्थव्यवस्था के उन महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान भी की जाननी थी जहां काले धन का सृजन हो रहा है।