भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से कॉरपोरेट समूहों को भी बैंकिंग का लाइसेंस दिए जाने के प्रस्ताव का बैंकों की कर्मचारी यूनियनों ने विरोध किया है। बीते सप्ताह आरबीआई के वर्किंग ग्रुप ने अपनी जो सिफारिशें दी थीं, उसमें निजी बैंकों में प्रमोटर्स के शेयर को 15 की बजाय 26 फीसदी तक किए जाने का भी प्रस्ताव दिया गया है। इसके अलावा नॉन-प्रमोटर शेयरहोल्डर्स की हिस्सेदारी को भी 15 फीसदी तक बढ़ाने की बात कही गई है। ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉयीज एसोसिएश के जनरल सेक्रेटरी सीएच वेंकटचलम ने कहा, ‘ये सभी प्रस्ताव बैंकिंग व्यवस्था को पीछे ले जाने वाले हैं और भारतीय परिस्थितियों के मुकाबले बेहद विपरीत हैं।’

वेंकटचलम ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि हमारे बैंकों में आम लोगों के 135 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। आरबीआई को आम लोगों के बैंकिंग में भरोसे की रक्षा करने वाली संस्था माना जाता है, लेकिन दुर्भाग्य से रिजर्व बैंक ही इस तरह के प्रस्ताव दे रहा है, जिससे बैंकों में जमा लोगों की रकम की सुरक्षा को लेकर खतरा पैदा हो गया है। हालांकि बता दें कि अभी इस संबंध में सिर्फ प्रस्ताव ही दिया गया है और कोई फैसला नहीं हुआ है।

बैंक एंप्लॉयीज एसोसिएशन ने एक पत्र में कहा, ‘क्या कोई उस इतिहास को भूल सकता है, जब बड़े कारोबारी घरानों के बैंकों ने कुप्रबंधन दिखाया था और उसके चलते निर्दोष लोगों को अपनी अमूल्य पूंजी गंवानी पड़ी थी।’ इस बीच बैंक यूनियनों ने 26 नवंबर को आंदोलन का फैसला लिया है। देश के कई मजदूर संगठनों की ओर से श्रमिक विरोधी नीतियों और बड़े पैमाने पर निजीकरण का विरोध करने के लिए 26 तारीख को प्रदर्शन का ऐलान किया गया है। अब इस प्रदर्शन में बैंक कर्मचारी यूनियनों ने भी शामिल होने का फैसला लिया है।

बता दें कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य भी कॉरपोरेट सेक्टर के बैंकिंग में आने के प्रस्ताव का विरोध किया है। दोनों ने संयुक्त रूप से एक लेख लिखकर इस फैसले को गलत करार दिया है। बता दें कि बीते दशकों में आरबीआई नए बैंक लाइसेंस देने को लेकर बेहद कड़ी नीति का पालन करता रहा है। ऐसे में अचानक इतने बड़े फैसले को लेकर भी हैरानी जताई जा रही है।