सैलरी को लेकर अकसर कर्मचारियों के बीच भ्रम रहता है और नए कर्मचारी तो कई बार इसे लेकर परेशान दिखते हैं कि आखिर उनके वेतन का कैलकुलेशन किस तरीके से किया गया है। वेतन के पूरे गणित को समझने के लिए सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि बेसिक सैलरी का कैलकुलेशन कैसे होता है? दरअसल किसी भी पोस्ट या ग्रेड पर नौकरी करने वाले कर्मचारियों को एक पूर्व निश्चित रकम मिलती है, जो बेसिक सैलरी कहलाती है। ग्रेड पे के मुताबिक इसका निर्धारण होता है। इसके अलावा अन्य अलाउंसेज और इन्क्रीमेंट का निर्धारण भी इस बेसिक सैलरी के मुताबिक ही तय होता है। जैसे किसी भी कर्मचारी को बेसिक सैलरी के 17 फीसदी के बराबर डीए मिलता है और एचआरए भी इसी सैलरी पर कैलकुलेट किया जाता है।
केंद्रीय कर्मचारियों की बात करें तो भारत सरकार वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सिर्फ बेसिक सैलरी का ही निर्धारण करती है। इसके बाद इस बेसिक सैलरी के बेस पर ही एचआरए और डीए आदि को कैलकुलेट किया जाता है। 10 साल में एक बार वेतन आयोग की सिफारिशें लागू की जाती हैं। फिलहाल 7वें वेतन आयोग के तहत न्यूनतम बेसिक सैलरी 18,000 रुपये तय की गई है। ग्रुप ए के अधिकारियों की बेसिक सैलरी 56,100 रुपये तय की गई है, जबकि ग्रुप बी के अधिकारियों को 35,400 रुपये मासिक बेसिक सैलरी मिलती है। ग्रुप सी के स्टाफ के लिए बेसिक सैलरी 18,000 रुपये निर्धारित है।
बेसिक सैलरी ज्यादा होने से क्या फायदा और नुकसान: सरकारी के अलावा निजी कंपनियों की बात करें तो कर्मचारियों की बेसिक सैलरी में कई बार बड़ा अंतर देखने को मिलता है। भले ही अलग-अलग कर्मचारियों के अकाउंट में बराबर राशि ट्रांसफर होती है, लेकिन उनकी बेसिक सैलरी में कई बार अंतर पाया जाता है। यदि किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी अधिक होती है तो फिर उसे अधिक टैक्स देना होता है क्योंकि सैलरी का यह पार्ट पूरी तरह से टैक्सेबल होता है। हालांकि पीएफ की रकम इससे ही तय होती है, इसलिए इस मोर्चे पर फायदा भी दिखता है।
क्या होती है ग्रॉस सैलरी: किसी भी कर्मचारी को मिलने वाली कुल सैलरी ग्रॉस सैलरी कहलाती है, जिसमें डीए, एचआरए, बेसिक सैलरी और अन्य भत्तों के तौर पर कई कंपोनेंट्स होते हैं। इसमें इनकम टैक्स का डिडक्शन शामिल नहीं होता।